सड़क से सोशल मीडिया तक मचा राजनीतिक बवाल, क्या अब लद रहा दलित राजनीति का वक़्त ?

देश मे इन दिनों राजनीति में यूँ तो कई मुद्दे हैं जिनपर राजनीति गर्म है। पक्ष और विपक्ष के लिए शायद यही संजीवनी भी बनें लेकिन इन सब के बीच एक मुद्दा ऐसा है जो फिलहाल जमीन के नीचे दबे लावे जैसा है लेकिन कभी भी यह ज्वालामुखी बन कर फट सकता है। आज देश के अंदर एक नई राजनीति की शुरुआत होती नजर आ रही है।इस राजनीति की धुरी में कोई एक दल फिलहाल नही है लेकिन इतना तय है कि अगर राजनीति में विरोध का नया स्वर बुलंद हुआ तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान वर्तमान में बीजेपी को होगा। इसके पीछे वजह खास है, वह वजह है कि विरोध बीजेपी का वोट बैंक माने जाने वाले स्वर्ण समाज की तरफ से है।

यह विरोध हो भी क्यों न? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर जल्दबाजी में एक अध्यादेश तो ले आई और एससी/एसटी एक्ट को पुराने स्वरूप में वापस भी कर दिया लेकिन जल्दबाजी में सरकार हर विपक्ष इसका समर्थन कर कितनी बड़ी भूल कर रहे हैं इसका अंदाज़ा शायद ठीक-ठीक न लगा सके। यही अब उनके गले की फांस बनता दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि मध्यप्रदेश में जहां काँग्रेस के बड़े नेता और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया,राजस्थान में मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री को, यूपी में बीजेपी के मंत्री जी को और सोशल मीडिया पर बीजेपी सहित सभी सवर्ण नेताओं का जोरदार विरोध देखने को मिल रहा है।

खबरों के मुताबिक यह विरोध अभी भले कमजोर से लग रहा हो लेकिन इसे कमजोर मानना न सिर्फ बीजेपी के लिए नुकसानदायक हो सकता है बल्कि विपक्ष को भी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इज़के पीछे कारण यह है कि इस एक्ट के उपयोग से ज्यादा दुरुपयोग हुआ है। इसका सबसे बड़ा भुक्तभोगी सवर्ण समाज ही रहा है। साथ ही नए कानून में कई विसंगतियां नजर आती है। हाल के दिनों में ही राजस्थान के एक पत्रकार पर पटना में फर्जी केस और नोएडा में एक कर्नल पर ऐसे ही एक मामले में लगे फर्जी केस ने इसे साबित भी किया है।

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि समाज में एक नए विरोध के साथ नई राजनीति की शुरुआत हो सकती है। इस शुरुआत का अगुवा ही राजनीति में नया और कद्दावर नेता बनेगा इसकी भी प्रबल संभावना है। इसको ऐसे समझा जा सकता है कि भले ही सड़क पर यह विरोध सीमित है लेकिन सोशल मीडिया पर यह प्रबल है। इससे भी इंकार नही किया जा सकता कि यूपी बिहार में अभी इसको लेकर भले शांति है लेकिन अगर यह अगुवा बनें तो राजनीति में बड़ा बदलाव तय है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दलित राजनीति के दिन अब लदने को हैं और नई राजनीति करवटें बदलने को तैयार है। यह कहना बेशक अभी जल्दबाजी से लगता हो लेकिन यूपी, बिहार और एमपी के बड़े हिस्से में घूमने और माहौल को देखने के बाद यह कहा जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *