न खाद, न पानी कैसे चले जिंदगानी

भारत मे जब हरित क्रांति हुई तो उसमें दो चीजें सबसे ज्यादा अहम थी। पहला हर खेत को पानी और खाद। लेकिन आज इन दो चीजों से किसान पूरी तरह महरूम दिख रहा है। आप अगर गांव से होंगे या खेती बाड़ी के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखते होंगे तो शायद आपको पता होगा कि कैसे एक बोरी यूरिया या खाद के लिए किसानों को घंटों लाइन में लगना होता है या ज्यादा पैसे देने होते हैं।

कृषि के लिए पानी की समुचित व्यवस्था आज भी नही है। सरकार ट्यूबवेल लगवाने या पम्प सेट खरीदने के नाम पर सब्सिडी देने की बात करती है, देती भी है लेकिन किसे यह नही पता क्योंकि जिन्हें यह मिलता है वह इसके वाजिब हकदार होते ही नही!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसी रैली की एक क्लिप सुन रहा था जिसमे किसानों के बारे में बोलते हुए वह यूरिया और खाद का जिक्र कर रहे थे। वह कह रहे थे कि हमारी सरकार आने के बाद ब्लैक मार्केटिंग रुकी है और आज जरूरत से ज्यादा यूरिया बाज़ार में है। अब सवाल है कहाँ है और किसे मिल रहा?

अब आपको शीर्षक का मतलब बताते हैं कि खाद और पानी का ज़िंदगी से क्या लेना देना? खाद और पानी फसल के लिए उतनी ही जरूरी है जैसे हमारे शरीर के विकास के लिए विटामिन, कैल्शियम और मिनरल या सीधे और आसान भाषा मे अच्छा भोजन, अगर हमें यह न मिले तो शायद हमारा विकास हो ही न सके। ठीक इसी प्रकार अगर खाद-पानी न मिले तो फसल चौपट होगी और किसान से इसका सीधा लेना देना है। या तो उसे इसका खामियाजा अपनी जान देकर चुकाना होगा या कर्ज लेकर खर्च निकालना पड़ेगा। ऐसे मे सरकारों से अनुरोध है कि लंबे चौड़े वादे नही तो कम से कम खाद पानी का ही जुगाड़ करा दें।

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