कांग्रेस को पारिवारिक पार्टी बताया जाता है। उसके आंतरिक संविधान पर सवाल उठाए जाते हैं। परिवारवाद का आरोप लगता आया है। घोटाले के आरोप लगे। आपातकाल कांग्रेस के ही शासनकाल में लगा, सिख विरोधी दंगे हुए। इंदिरा और राजीव ने अपनी जान गंवाई। इसके बावजूद आज अगर यह पार्टी खड़ी है और सिमटती नजर आने के बावजूद बीजेपी को टक्कर देने का दम्भ भरती नजर आ रही है तो यकीन मानिए कुछ तो खास इसमे जरूर है। कभी जोड़-तोड़ तो कभी पक्ष विपक्ष, कभी मुद्दे तो कभी विकल्पों की कमी से सत्ता का सुख भोगती आई कांग्रेस के लिए आज का यह दौरा थोड़ा अलग है लेकिन नया नही है। यही वजह है कि पिछले दिनों तीन राज्यों में सत्ता में वापसी कांग्रेस कर सकी है। यही वजह है की अपने दामन पर घोटालों और दंगों के बदनुमा धब्बों के बावजूद राफेल पर लगातार सरकार को घेर रही है।
कांग्रेस आज तटस्थ है। देश की राजनीति में उसकी भूमिका आगे क्या होगी, भविष्य क्या होगा और आने वाले समय मे वह वापसी करेगी भी या मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार होगा यह तमाम सवाल सभी के मन मे हैं। हालांकि जवाब तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन ऊपर लिखी हुई तमाम बातों को पढ़ने के बाद आप सोच रहे होंगे कि इसमें अजीब क्या है? तो यकीन मानिए अजीब इस देश की जनता है, अजीब हमारे जनप्रतिनिधि हैं, अजीब यहां का विपक्ष है और बहुत कुछ अजीब है। क्योंकि अजीब न होता तो आपतकाल की मार झेलने वाला देश आपातकाल लगाने वालों को सत्ता न सौंपता। विकल्प बनाने पड़ते हैं, उन्हें मौका देना होता है। लेकिन हमने 70 साल लग दिए विकल्प ढूंढने में और अब 4 साल में अब फिर कांग्रेस को विकल्प मान बैठे।
यह अजीब नही तो और क्या है? अब कांग्रेस में अदब और अकड़ की बात इसलिए आती है क्योंकि यह सभी दलों की धुरी हुआ करती थी लेकिन आज छोटे क्षेत्रीय दल भी इसे आंख दिखा रहे हैं। यह अकड़ ही है कि इस स्थिति में भी कांग्रेस एकला चलो का दम्भ भर रही है लेकिन ऐसी उम्मीद नही के बराबर है कि बिना झुके और क्षेत्रीय दलों का समर्थन लिए कांग्रेस कुछ भी कर पाने की स्थिति में होगी। इसलिए कहा गया अजब राजनीति की गजब कहानी।