कांग्रेस और बीजेपी भारत के दो ऐसे राजनीतिक दल हैं जिनके इर्द गिर्द ही सत्ता का पहिया घूमता नजर आता है। यह परिदृश्य भी बहुत पुराना नही है। बहुत से बहुत दो दशक मान लें वरना सिर्फ कांग्रेस ही राजनीति की धुरी मानी जाती थी। बाद में अटल जी जैसी शख्सियत कहें या लोगों की मजबूरी या दलों के वर्चस्व की लड़ाई की कांग्रेस कुछ सालों तक सत्ता से बाहर हुई। उसके बाद वापस आई और दस साल रही फिर अब जाकर चार साल से सत्ता से दूर है। ऐसे में सत्ता की आदत भुलाए नही भूल रही। सच माना जाए तो कांग्रेस या बीजेपी राजनीति के धुरी नही हैं बल्कि मजबूरी हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि एक तो क्षेत्रीय दलों के अलावा कोई ऐसा बड़ा दल नही है जिसकी स्वीकार्यता पूरे देश, हर राज्य, हर धर्म और हर जाति में हो। दूसरी बात यह कि कोई ऐसा नेता भी नही जो अटल जी की तरह विपक्ष को लामबंद कर एक छत के नीचे ला सके और कांग्रेस के साथ बीजेपी को भी चुनौती दे सके। यही वजह है कि आज जब लोग बीजेपी से नाराज होते हैं तो कांग्रेस उनकी जरूरत बन जाती है और जब कांग्रेस से रूठते हैं तो बीजेपी का दामन थाम लेते हैं। इसके अलावा न कोई चारा है न सहारा है। कई दल और नेताओं ने कई बार ऐसा विकल्प देने की विफल कोशिश की भी, ऐसे में देखना है कि राहुल-मोदी से आगे बढ़ कर किसी अन्य विकल्प के बारे में कब हम सोचेंगे और क्या सोचेंगे?