छत्तीसगढ़ भी देश के अन्य राज्यों की तरह किसान आत्महत्या जैसे मामलों से अछूता नही है लेकिन यहां की बीजेपी सरकार इन आकंड़ों को न मानने को तैयार है न बताने को, सरकार का मानना है कि सब ठीक है और किसान खुशहाल हैं। अब सवाल है अगर खुशहाल हैं तो आंकड़े आप बता दिजीये और अगर नही हैं तो जवाब दीजिये। सच्चाई छुपती नही वह भी ऐसे वक्त में जब पूरे देश में यह एक गंभीर समस्या है।
जब छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया तब के आंकड़े बताते हैं कि वहां किसानों की संख्या 44.54 फीसदी थी, जो 2011 में ही घट कर 32.88 फीसदी राह गया। ऐसे में 7 साल और बीत गए तो कैसे मान लें कि किसान खुशहाल है? और तो और मजदूरों की संख्या गठन के समय 31.94 थी वह बढ़ कर 41.80 फीसदी हो गई। ऐसे में कोई डिग्री धारी व्यक्ति तो मजदूर बना नही न ही कोई बाहरी आया? यह किसान ही थे।
2006 से 2010 के आंकड़े भी यही कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में भी किसान बदहाल हैं। इस दौरान हर दिन 4 से 5 किसानों ने आत्महत्या की जिसके बाद सरकार ने आंकड़ों से खेलना शुरू कर दिया एयर बताया गया कि एक भी किसान ने आत्महत्या नही की और सब थी है। हालांकि खुद वहां की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर माना की एक साल में 954 किसानों ने आत्महत्या की है। इन आंकड़ों को ही देखें तो भी यह तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से ज्यादा है। ऐसे में कुछ करने की जरूरत है झूठ बोलने से किसानों का भला नही होगा न ही सच्चाई बदलेगी।