नोटबंदी को एक साल पूरे हो चुके हैं, कहते हैं सब दिन होत न एक समान यह हम भारतीयों से अच्छा कौन जानता और समझता है. आज से ठीक एक साल पहले तक लेनदेन के लिए 500 और 1000 के नोट सबसे बड़ी भारतीय मुद्रा थे लेकिन एक साल बाद उनका नामोनिशान तक नही है. आज उनकी जगह दो हज़ार दो सौ 50 और 500 के नए नोट बाजारों में टहल रहे हैं.
नोटबंदी के एक साल बाद भी आज इसके फायदे और नुकसान का आकलन जारी है लेकिन न सरकार को पता है न आरबीआई को कि इसके कितने फायदे हुए, कितने जनता को मिले, कितने अर्थव्यवस्था को हुए और कितना कालाधन कम हुआ या अंकुश लग सका. तो कुल मिलाकर नतीजा यही निकला अपनी डफली अपना राग कहने का मतलब है विपक्ष अपने हिसाब से नुकसान बता रही है सरकार आंकड़ों की बाजीगरी से फायदे दिखा रही है. जनता बहुत हद तक भूल चुकी है और अर्थशास्त्री और रिज़र्व बैंक भी अब इसके फायदे नुकसान से ज्यादा ब्याज दर और जीडीपी की गणना में व्यस्त हैं.
अब जबकि नोटबंदी की इस बरसी पर हमने आपको सभी की स्थिति बता दी है तो आइये अब यह भी बता दें कि नुकसान कितना हुआ क्या हुआ और कैसे हुए, हम भी आंकड़े ही बताएँगे साथ ही कुछ लोगों के बयान और ज्ञान का रेफेरेंस भी देंगे. तो बिना प्रवचन सुनाये आपको बताते हैं इसके 10 सबसे बड़े नुकसान.
- रोजगार के नए मौके आने बंद हुए नगदी की तंगी ने ऐसा हाल किया कि रोजगार और निवेश का पूरा माहौल बदल सा गया. सरकारी आंकड़ों और मंत्री के बयानों ने भी यह बता दिया की रोजगार के मौके काफी कम या नहीं के बराबर हैं इसमें नोटबंदी का योगदान भी है.
- उद्योग धंधों पर ताला लग गया जिसके वजह से जीडीपी को गहरा नुकसान हुआ और कई अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी इसके पीछे नोटबंदी को वजह बताया.
- डिजिटल इंडिया योजना को प्रचारित प्रसारित करने का तरीका नोटबंदी के बाद आया लेकिन इसका नुकसान अब महंगे सर्विस चार्ज और टैक्स भरकर आम जानता को चुकाना पड़ रहा है.
- बचत खाते पर ब्याज दर घटी भारतीय स्टेट बैंक समेत कई सरकारी और निजी बैंकों ने सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज दर घटा दी है. डी.के. जोशी के मुताबिक इसमें थोड़ी बहुत भागीदारी नोटबंदी ने निभाई है. उनके अनुसार नोटबंदी के चलते बैंकों में लिक्विडिटी बढ़ गई है
- कालाधन पर अंकुश लगाने की बात की गई लेकिन आज तक सरकार यह नहीं बता सकी की कितना काल्धन वापस आया क्योंकि कैश में केवल एक या दो प्रतिशत कालेधन का लेनदेन होता है बाकी गोल्ड रियल स्टेट और बेनामी सम्पति से होता है.
- नोटबंदी के बाद सरकार को छपाई में करोडो अरबों रुपये खर्च करने पड़े जिसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर हुआ. कागज़ और इंक के साथ कर्मचारियों में यह खर्च ज्यादा हुआ.
- जाली नोटों पर रोक लगाने कि बात कही गई लेकिन आज भी बाज़ार में धड़ल्ले से जाली नोट चल रहे हैं साथ ही नेपाल और बांग्लादेश सीमा से इसकी बड़े पैमाने पर तस्करी हो रही है. जहाँ 2000 के नोट 1200 रुपये में चलाये जा रहे हैं.
- टेरर फंडिंग और आतंकवाद नक्सलवाद को रोकने का जरिया भी इसे बताया गया लेकिन आज भी कश्मीर में हालत जस के तस हैं कभी कम कभी ज्यादा हिंसा आज भी हो रही है नाक्साली गतिविधियाँ भी जारी है.
- बिना तैयारी के इसे लागू करने की बात एसबीआई की पूर्व चेयरमैंन भी कह चुकी हैं यानि आज भी नए नोटों कि कमी और बैंकों में जमा पुराने पैसे की परेशानी से बैंक रूबरू हो रहे हैं.
- ख़बरों के मुताबिक आज भी पुराने नोटों को गिनने का काम जारी है साथ ही नए नोटों की छपाई भी लगातार चल रही है. इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि अर्थव्यवस्था आज भी इससे उबार नहीं पाई है.
कुल मिलाकर अगर कहें तो इसके सिर्फ नुकसान हुए ऐसा भी बिल्कुल नहीं है लेकिन यहाँ हमने सिर्फ नुकसान को केन्द्रित करते हुए जानकारी देने कि कोशिश की है. अगर आपके पास भी कोई आकलन,अनुमान,आंकड़ा हो तो कमेंट कर हमें अपनी राय दें. साथ ही ऐसी और जानकारियों के लिए हमें लाइक करें,शेयर करें और सब्सक्राइब भी करें. आपकी पसंद ही हमारी प्राथमिकता है.