अशिक्षा और जागरूकता की कमी से भयावह हो रहे आत्महत्या के आंकड़े, पढ़ लें यह क्रूर सच्चाई

देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां की साक्षरता दर काफी कम है। ऐसे में सरकारी योजनाओं के अलावा कुरीतियों के प्रति जागरूकता का भी घोर अभाव है। न शिक्षा है, न सड़क है, न बिजली है, न पानी है, हर तरफ गरीबी और अशिक्षा हावी है। आंकड़ों में भले ही जोर देकर यह खेल दिखाया जाता है कि हम तेजी से विकास कर रहे हैं, साक्षरता दर बढ़ी है, लोग जागरूक जो रहे हैं लेकिन आज भी जब आप ओड़िसा, बिहार, झारखंड, छतीसगढ़ इत्यादि राज्यों के सुदूर गांव में जाएंगे तो आप हकीकत को देख दंग रह जाएंगे। साक्षरता के नाम पर अंगूठा दिखेगा और सड़क के नाम पर पगडंडियां। ऐसे में आप किस समाज के विकास और जागरूक होने का दम्भ भरते हैं और कैसे भारत को विकसित करने का सपना संजोते हैं?

आपको जान कर हैरानी होगी, हमें लिखते हुए हो रही है कि अलग-अलग गाँव ऐसे हैं जहां लोग आज भी अपने जनप्रतिनिधि को नही जानते, अपने सीएम को नही पहचानते, योजनाओं की जानकारी नही है, कानून का पता नही है। ऐसे में लोग बस एक ही चीज जानते हैं कि अगर जिंदगी से तंग आ जाओ तो मौत को गले लगा लो। ऐसे में जब कि हम आये दिन किसी ऐसे की कहानी सुनते हैं जिसे अपने परिजन की लाश कंधे पर ठेले पर लाद कर अंतिम विदाई देनी पड़ती है जहां स्वास्थ्य व्यवस्था कुछ नही है ऐसे में लोग आत्महत्या न करें तो क्या करें? सरकार को अगर विकसित भारत बनाना है तो पहले जागरूक भारत की नींव रखिये।

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