भारत की राजनीति में आज दो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। यूं कहें कि राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में बस यही दो नाम है। पहला नाम है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरा नाम है कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का। 2019 के लोकसभा चुनावों में अब काफी कम वक्त बचा है। ऐसे में हर तरफ आकलन और अनुमान का वह दौर जारी है जिसमे भावी प्रधानमंत्री की बात की जा रही है। मोदी से राहुल की तुलना की जा रही है। इस चर्चा के केंद्र में तमाम वह मुद्दे और बातें हैं जो होनी चाहिए।
बात सिर्फ राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य की करें तो अध्यक्ष बनने के बाद से लेकर अभी तक उनकी उपलब्धि कुछ खास नजर नही आती है। 2018 में तीन राज्यों में कांग्रेस को बेशक जीत मिली हो और अध्यक्ष के तौर पर राहुल श्रेय ले भी रहे हैं लेकिन इसके बावजूद यहां समझने की जरूरत है कि यह नतीजे कांग्रेस की जीत के नही बल्कि बीजेपी के हार के हैं। मसलन तीन राज्यों में बीजेपी सरकार थी और राजस्थान को छोड़ काफी सालों से थी ऐसे में एन्टी इनकम्बेंसी का होना लाजमी था। इसी का फायदा और कर्जमाफी के घोषणा के भरोसे राहुल की वैतरणी पार लग गई।
इसके अलावा अब उनके भविष्य की बात करें तो मोदी की तुलना में और कोई नेता राष्ट्रीय स्तर पर नही है। न जनाधार में न लोकप्रियता में। न कोई राष्ट्रीय दल है। इसके अलावा राहुल गठबंधन को राजनीति पर भरोसा रखते हैं, साथ ही यह ध्यान देने योग्य बात है कि ज्यादातर समय तक कांग्रेस ने इसी भरोसे सरकारें चलाई है। ऐसे में इस मामले में राहुल का पलड़ा भारी है। साथ ही अगर मुद्दों की सही समझ और उन्हें जोरदार तरीके से उठने की बात करें तो राहुल अब तक विफल ही नजर आते हैं। जैसे राफेल की ही बात करें तो इस बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है, कालाधन है, आर्थिक भगोड़ों की वापसी है लेकिन पिछले काफी समय से वह राफेल के इर्दगिर्द घूम रहे हैं।
लोकप्रियता उनकी बेशक बढ़ी है लेकिन मोदी की तुलना में वह काफी पीछे हैं। गंभीरता की बात करें तो वह उनके हावभाव से दूर है। भाषणों की गलतियां भी कई बार उनका मजाक बना जाती हैं। ऐसे में राहुल बेशक एक बड़े दल के मुखिया हैं और उनके साथ अनुभवी नेता हैं लेकिन 2019 में राहुल के भविष्य पर संशय के बादल ही नजर आ रहे हैं।