कश्मीर भारत के लिए एक ऐसी समस्या बन गया है जिसका कोई हल फिलहाल नही निकल सका है। सालों से इसके लिए युद्ध लड़े गए, करोड़ो-अरबो रुपये ख़र्च किये गए, सैन्य शक्ति बढ़ाई गई इसके बावजूद नतीजा सिफर रहा। ऐसा इसलिए नही की सेना में कोई कमी है, ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत का नेतृत्व जिन हाथों में है उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी है। कश्मीर में तिरंगे का अपमान होता रहा, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते रहे,सेना सीमा की हिफाज़त में अपनी कुर्बानी देती रही लेकिन एक उचित आदेश तक सरकार से तामिल न हो सका जिसमें यह लिखा हो कि सेना अपने हिसाब से इस तरह की घटनाओं से निपट ले।
यह खबर लिखते हुए मशहूर कवि डॉ हरिओम पवार की कविता की एक लाइन याद आ रही है जिसमे वह सरकार को चुनौती और सलाह देने के अंदाज़ में लिखते हैं, बस नारों में गाते रहिएगा कश्मीर हमारा है,छू कर तो देखो हिम चोटी के नीचे अंगरा है, दिल्ली अपना चेहरा देखे धूल हटाकर दर्पण की, इतिहासों की पृष्टभूमि है बेशर्म समर्पण की। इसके बाद वह इसका इलाज बताते हुए लिखते हैं, दिल्ली केवल दो दिन की मोहलत दे दे तैयरी कि, सेना को आदेश थमा दें घाटी गैर नही होगी, जहां तिरंगा नही मिलेगा उनकी खैर नही होगी।
कुल मिलाकर यह पंक्तियां भारत के हर उस नागरिक की सेना के प्रति सम्मान को दिखाती हैं, भरोसे को दर्शाती हैं और अपनी सैन्य छमता पर उम्मीद जताती नजर आती हैं। हालांकि इन पंक्तियों में सरकार की कार्यप्रणाली पर भी तगड़ा वार है, क्योंकि आज तक किसी सरकार ने कश्मीर मुद्दे को लेकर सेना को खुली छूट नही दी, समझौते हुए, बातें हुईं, पाकिस्तान को हमने चेतावनी दी,समझाया लेकिन उसके नापाक इरादे नही बदले। ऐसे में बस यही एक उपाय है कि सेना को खुली छूट दे दो, रोज रोज से अच्छा है एक मौका दे दो बाकी भरोसा रखें नतीजे शांति का नया सवेरा लाएंगे।
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