विशेष- लोजपा-जदयू खींचतान में बीजेपी की खामोशी बहुत कुछ कहती है, पढ़ें

बिहार विधानसभा चुनावों की बिसात बिछने लगी है। नफा-नुकसान का आकलन शुरु हो गया है। इसी के साथ पहले शुरु हुआ नेताओं के पाला बदलने का खेल, फिर हुआ दल बदलने का खेल और अब शुरू है आरोप-प्रत्यारोप का दौर। आरोप प्रत्यारोप भी अगर सत्ता पक्ष और महागठबंधन के बीच हो तो शायद इसमें कुछ नया नही माना जाता लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है कि तर्ज पर पहले जहां मांझी, नीतीश के साथ आ मिले वहीं एनडीए के पुराने पार्टनर लोजपा ने मोर्चा खोल दिया।


लोजपा की तरफ से रामविलास पासवान और चिराग पासवान जहां सीधे-सीधे जदयू और सीएम नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल हुए हैं वहीं जदयू ने भी संयमित ही सही लेकिन कई ऐसे बयान दिए जो लोजपा के बयान का जवाब माना गया। आश्चर्य तब ज्यादा होता है जब बीजेपी इन मसलों अपर चुप्पी साध जाती है। इस खामोशी के अपने-अपने मायने तलाशे जा रहे हैं और लोजपा-जदयू के इस खेल में फायदा बीजेपी का होगा यह भी स्पष्ट है।


अब जरा लोजपा-जदयू को कुछ देर के लिए अलग कर के देखे तो लोजपा सुप्रीमों चिराग कई बार यह दोहरा चुके हैं कि पार्टी जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारेगी। आज इसी मुद्दे पर पटना में लोजपा की तरफ से उच्च स्तरीय बैठक भी बुलाई गई थी। इस बैठक में लोजपा के नेताओं ने जदयू से अलग होने से संबंधित किसी भी तरह के फैसले के लिए चिराग को अधिकृत कर दिया और एक स्वर में यह मांग उठाई की जदयू ने कालिदास कह चिराग का अपमान किया है और कार्यकर्ता चाहते हैं कि लोजपा अलग से चुनाव लड़े।


बीजेपी की बात करें तो नीतीश को बिहार में बड़े भाई का दर्जा देने वाली बीजेपी इस पूरे वैवद पर चुप है। न तो समझाने की कोशिश की गई न ही गठबंधन बचाने की। बीजेपी ने ऐसा क्यों किया? इसका जवाब है नीतीश के साथ पार्टी को लगभग 100 सीटें मिलेंगी और लोजपा स्पष्ट कर चुकी है कि वह बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार नही उतारेगी। मतलब लोजपा-जदयू के अलग होने से बीजेपी को फर्क नही पड़ेगा। दूसरा कारण, अगर लोजपा 143 में से 40 सीटों तक भी चुनाव में अपने दम या बीजेपी से अंदरखाने मिले सहयोग से निकाल लाती है तो जदयू की राह मुश्किल होगी वही बीजेपी के पास दूसरा विकल्प होगा

जदयू-लोजपा के अलग होने के केस में राजद को भी नुकसान होगा। मतों का विभाजन होगा और कई ऐसी सीटें होंगी जहां लोजपा अहम प्लेयर साबित होगी। रामविलास पासवान को राजनीति का लंबा तजुर्बा है। वह सैलून से राजनीति में हैं और सरकार किसी की हो उनके मंत्री बनने का रिकॉर्ड कायम रहा है। इसके अलावा वह बिहार में बड़े प्लेयर की भूमिका निभा चुके हैं और चिराग भी कहीं न कहीं इस बात की वजह से ही ओवर कॉंफिडेंट हैं। हालांकि असली जोड़ तोड़ परिणामों पर निर्भर होगा लेकिन बीजेपी के दोनों हाथ मे लड्डू हैं और लोजपा जदयू के साथ नीतीश के फिर से सत्ता में वापसी के सपने को पलीता लगा सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *