प्रधानमंत्री मोदी कब किस कमजोरी को अपनी मजबूती बना लें यह कहना और समझना थोड़ा कठिन है। इसके अलावा वह कब कौन सा फैसला लेकर किसे चौंका बैठें यह भी समझ से परे है। मोदी सरकार आज कई मोर्चों पर घिरी है। विपक्ष हमलावर है, नौजवान और किसान सड़क पर उतर प्रदर्शन करने में लगे हैं, सीमा पार से आतंकवाद और सीमा के अंदर नक्सलवाद के मुद्दे भी सरकार के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। ऐसे में इनका 2019 के चुनाव पर क्या असर होगा इसको लेकर आकलन और अनुमान का दौर अभी से शुरू हो चुका है। उपचुनाव के नतीजों के बाद तो 2019 में मोदी की राह भी कठिन बताई जाने लगी है। हालांकि यकीन मानिए मोदी की जो कार्यशैली है और शाह की जो रणनीति है वुसके अनुसार 2019 के लिए अभी कुछ खास आना बाकी है।
केंद्र सरकार आज भले ही रोजगार और किसानों के मुद्दे पर घिरी हुई है लेकिन ऐसा भी नही है कि सरकार के पास उपलब्धि के नाम पर कुछ नही है। इतना तो है कि उसके आधार पर आगे काम करने का समय मांग लिया जाए। इसके अलावा कोई न कोई एक फैसला अभी आना बाकी है जो 2019 चुनाव की दशा और दिशा तय करेगा। यह फैसला क्या होगा इस पर अनुमान लगाना थोड़ा कठिन है लेकिन इतना तय है कि इसमें अभी वक़्त है। कुछ हफ्तों, कुछ महीनों में सरकार की कार्यप्रणाली तय कर देगी की चुनाव किन मुद्दों पर लड़े जाएंगे और जीते जाएँगे। विपक्ष और राहुल को भी अपनी तैयारी यही मां कर करनी चाहिए कि एक चाल से पूरा खेल बिगड़ सकता है।