बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, लेकिन दहेज न दिया तो उनका सुख भूल जाओ?

आजकल एक नारा जागरूकता फैलाने के मकसद से बहुत सुनने को मिलता है। जिसमे बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की आवाज़ बुलंद की गई होती है लेकिन जब इस नारे को प्रचारित करते ब्रेक के बाद कोई समाचार प्रसारित होता है तो उसमें कोई न कोई, कहीं न कहीं की एक घटना ऐसी जरूर होती है जिसमे किसी न किसी महिला द्वारा आत्महत्या करने की बात बताई जाती है? इसके पीछे का कारण लगभग एक सा होता है वह होता है दहेज के लोभ में हत्या, ऐसे में सवाल है कि क्या बेटियों को पढ़ाना लिखाना काफी है या उनके सुरक्षित जीवन के लिए दहेज जमा करना ज्यादा जरूरी है?..

आज का परिवेश देखने, सुनने और समझने के बाद तो ऐसा ही लगता है कि हम तेजी से बदलते इस युग मे सब कुछ बदलने को तैयार हैं लेकिन अपनी सोच बदलने के लिए हमें अभी और वक़्त की जरूरत है। हम एक ऐसे समाज मे हैं जहां बिना दहेज हमारा काम नही चल सकता। एक बेटी हर तरीके से परिपूर्ण हो इसके बावजूद बिना दहेज के आज उसकी शादी नही हो सकती है और अगर हो गई तो भी इसकी गारन्टी नही की वह सुरक्षित है भी या नही। कुल मिलाकर कहें तो उनकी जीवन की डोर तभी तक सुरक्षित है जब तक दहेज के लोभियों की डिमांड पूरी हो रही है। वरना आज भी दहेज की मारी बेटियां अपनी इहलीला समाप्त कर रही हैं और हम देख रहे हैं। सरकार को इस दिशा में कुछ नए कानून लाने, संसोधन करने या सोचने की जरूरत है।

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