बिहार में पूर्ण शराबबंदी के दो साल पूरे हो चुके हैं। इन दो सालों में सरकारें बदली, दल बदले, विरोधी बदले, कानून बदले, लोग बदले, माफिया बदले और भी न जाने क्या-क्या बदला लेकिन कुछ नही बदला तो बिहार के सीएम और शराब पीने, पिलाने वाले। इसमे कहीं कोई शंका नही कि शराबबन्दी का नीतीश कुमार का फैसला एक बड़ा और साहसिक फैसला था लेकिन यह कितना सही था और कितना सफल है इसको लेकर आज भी असमंजस की स्थिति है।
यूँ कहें कि अपने-अपने हिसाब से इसके आकलन और अनुमान का दौर जारी है। आज जब आप किसी अखबार के पन्ने को पलटेंगे तो शराबी धराया, अवैध शराब पकड़ी गई इत्यादि खबरें आम हैं लेकिन इससे भी आम है बिहार में शराब की उपलब्धता और सीएम साहब यह एक सच है, इसे आप मान लें तो शायद कुछ बदलाव आए।
आज एक कार्यक्रम शराबबंदी के दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। इस दौरान सीएम और डिप्टी सीएम दोनो इसकी बखान करते दिखे। सुशील मोदी तो यहां तक कह गए कि इसे कोई हटा नही सकता। खैर इसी कार्यक्रम के दौरान जब सीएम साहब से पूछा गया कि इसपर उनका क्या कहना है तो सीएम साहब बोले जाइये जनता से खुशी के बारे में पूछिये?
सर बहुत नम्र निवेदन के साथ यह कहना है कि जनता तो खुश है। यह फैसला उचित और समाज हित मे है लेकिन इस फैसले के बाद जो शराबी जेल में बंद है( संख्या एक लाख से ज्यादा है) उनके परिवार की खुशी का क्या?
दूसरा सवाल और पहले सवाल का जवाब यह है महिलाओं ने शराब बंद करने की बात कही थी। उनके परिवार के सदस्य या पति को जेल भेज केस लड़ने की नही? दूसरा सवाल यह है कि अवैध शराब रोज बड़ी मात्रा में कहीं न कहीं पकड़ी जा रही है। इन मामलों में ट्रक या गाड़ी के ड्राइवर खलासी गिरफ्तार होते हैं। ऐसे में माफिया का क्या? और इसी में इस माफियाओं को सहयोग देने वाले सफेदपोश और पुलिस प्रशासन का क्या? इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। उम्मीद है सरकार इस बाबत सोचते हुए कार्रवाई करेगी।