देश की राजधानी दिल्ली में चुनावी संग्राम खत्म हो चुका है। तीखी बयानबाजी, अलग-अलग मुद्दे, भाषण से लेकर राशन तक कि लड़ाई पर जनता ने अपनी मुहर लगा दी है। एग्जिट पोल भी आ चुके हैं। मुद्दे, रुझान सब सामने हैं और अब बस बेशब्री से नतीजों का इंतजार है। कहीं किसी खेमे में एग्जिट पोल के बावजूद डर है तो कहीं ओवर कॉन्फिडेंस है। खैर इन सब मुद्दों पर बात 11 फरवरी के बाद कि जा सकती है कि सत्ता में कौन होगा।
सत्ता के संघर्ष से पहले की बात करें तो कभी बीजेपी को केंद्र की सत्ता में तो कभी नीतीश को बिहार की सत्ता में पहुंचाने वाले पीके यानी प्रशांत किशोर की रणनीति के साथ उतरी आम आदमी पार्टी जहां काम के दम पर वोट मांग रही थी वहीं बीजेपी राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, शाहीनबाग, 370 और पाकिस्तान की माला जपती नजर आई। वहीं इन चुनावों में कांग्रेस का योगदान नगण्य रहा या यूं कहें कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को जान बूझकर वॉकओवर दे दिया। बीबीसी ने इसे कुछ यूं लिखा है कि, “कभी जिन झुग्गी, झोपड़ी और बंगलादेशी वोटर्स का झुकाव कांग्रेस की तरफ था वह आप की तरफ शिफ्ट हो गया।” बिना औपचारिक घोषणा के भी यह कमोबेश गठबंधन सा प्रतीत होता है।
इसके कई कारण सामने हैं। पहला कांग्रेस की तरफ से दिल्ली चुनाव में दिखी निष्क्रियता, प्रियंका और राहुल गांधी ने महज एक रैली की, उस रैली के बारे में राहुल गांधी ने खुद ट्वीट कर बताया(यह अलग बात है तस्वीर जो पोस्ट की गई उसमें समय तीन बजे का था और ट्वीट शाम के 4 बजे किया गया) था। इसके बाद कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी भी निष्क्रिय रहीं। इसके बाद कमजोर उम्मीदवार और अब एग्जिट पोल के बाद अधीर रंजन चौधरी की प्रतिक्रिया ने भी इस संदेह को काफी हद तक पुख्ता कर दिया है। कुल मिलाकर कहें तो दिल्ली में लड़ाई दो दलों तक और महज एक मुद्दे तक सिमटती नजर आई।
दिल्ली की सत्ता में आम आदमी पार्टी की वापसी हो रही है इसमे न चुनावों से पहले कोई शक था, न आज है। जनता की सबसे अहम जरूरतों को पूरा करने का दावा कर वोट मांगा गया, फ्री की बिजली और पानी के साथ स्वास्थ्य और शिक्षा की बात कही गई। जनता ने यकीन भी किया यह सबसे बड़ी बात है। इसके पीछे दो कारण हैं पिछले साल सितंबर से बिजली का बिल लाखों लोगों का जीरो या कम रहा, पानी का बिल जीरो या कम रहा, स्कूल में काम अच्छा हुआ और स्वास्थ्य में भी, ऐसा दावा किया गया और जो दिखता है वह बिकता है कहावत एक बार फिर चरितार्थ हो गई।
अब बीजेपी कहाँ पीछे रही इसकी बात ऊपर-ऊपर से कर लेते हैं, या कहाँ कांग्रेस ने वाक ओवर दे दिया? दरअसल कांग्रेस इस लड़ाई में कहीं थी ही नही और बीजेपी ने सबसे बड़ा नुकसान चेहरे के बिना चुनाव लड़ने को लेकर कर लिया। केजरीवाल के फ्री-फ्री योजना के आगे बीजेपी अपने कार्य, संकल्प और योजनाओं को भुनाने में ठीक वैसे विफल रही जैसे कहें एक के साथ एक फ्री और सब कुछ फ्री के बीच का जो अंतर होता है। अब तक राष्ट्रवाद, तीन तलाक, कश्मीर, 370, राम मंदिर जैसे बड़े मुद्दे के साथ जीत हासिल करती बीजेपी फ्री वाली स्कीम के नुकसान नही समझ पाई।
उदाहरण के लिए बात करें तो हम उस समाज मे रहते हैं जहां समोसे के साथ चटनी फ़्री, सब्जी के साथ धनिया और मिर्च फ्री, और तो और च्यवनप्राश के साथ कोलेस्ट्रॉल फ्री लिखा हो तो ही हम खरीदते हैं। खैर मार्केटिंग बीजेपी कांग्रेस सब ने अपने अपने हिसाब से अपने समय मे की है तो अगर आप ने की तो क्या बड़ी बात हो गई? अब आगे क्या होगा थोड़ा इसपे नजर डालते हैं? आगे आम आदमी पार्टी की सरकार आएगी और एक बार फिर अगले साढ़े चार साल तक केंद्र और सत्ताधारी दल और एलजी के खिलाफ ब्लेम गेम की राजनीति होगी। बीजेपी पर चुनाव हारने के बाद बदला लेने का इल्जाम लगाया जाएगा। बिजली बिल, पानी बिल, बस टिकट सब वसूला जाएगा और केन्द्रनके मत्थे मढ़ा भी जाएगा। मैं और मेरा आप के साथ अनुभव और आकलन सही रहा तो मार्च से यह शुरू हो जाएगा। बाकी थोड़े इंतजार का मजा लीजिये।