प्राकृतिक रूप से बिहार बहुत समृद्ध राज्य है। यहां न पानी की कमी है, न जमीन की न ही उत्पादकता में कोई कमी है। कमी है तो सरकारी नीति और नियत में जिसने आज तक किसानों को उनके हाल पर छोड़ रखा है। हालांकि सबसे ज्यादा बार किसान कर्मण्य पुरस्कार जीत कर किसानों ने सरकार को तोहफा दिया है, जिसे सरकार अपनी उपलब्धि बता पीठ थपथपा लेती है लेकिन अगर यही सरकार इस पुरस्कार से आगे बढ़ कभी वाकई किसानों की हमदर्द बन सोचती तो बिहार के किसान शायद देश मे सबसे आगे होते।
अब बात करते हैं किसानों की बदहाली के कारणों की, बिहार में हर साल बाढ़ और सूखा का प्रभाव बराबर रूप से होता है। मुआवजा का खेल भी चलता है लेकिन किसानों तक जब चेक पहुंचता है तो रकम हास्यास्पद होती है। उत्तरी बिहार में बाढ़ जहां हर साल तबाही की एक नई इबारत लिख फसल को तहस नहस कर जाती है वहीं दक्षिणी बिहार में सूखे से किसान बर्बाद होते हैं।
इससे निपटने में सरकार क्या करे? अब इस सवाल का जवाब है कि नदी जोड़ो परियोजना। यह कोई मजाक नही है, यह बात उस समय की है जब अब्दुल कलाम ने कहा था कि बिहार की नदियों को जोड़ दो हर दुख दर्द दूर हो जाएगा, समृद्धि आएगी। खैर यह इतना आसान नही लेकिन कोशिश करने में क्या दिक्कत है? किसान आत्महत्या का बिहार का कोई रिकॉर्ड नही है लेकिन ऐसा भी नही है कि ऐसे मामले बिल्कुल नही है।