महाराष्ट्र में तनाव जातिगत नहीं राजनीतिक है, राजनीति के चक्कर में सौहार्द की आहुति

महाराष्ट्र में आज का दिन राजनीति के लिहाज से शर्मनाक रहा. आज का यह दिन स्थानीय सरकार के साथ देश भर की राजनीति को गर्म करने वाला साबित हुआ. न तो आज पुलिस प्रशासन की चली न सरकार की न मुद्दे थे न सौहार्द की कमी की कोई वजह थी लेकिन इसके बावजूद जो हुआ वह शर्मनाक था. कुछ दिनों से देश का माहौल ऐसा है जैसा न हमारी पहचान थी, न सभ्यता न हमारे संस्कार ऐसे में यह कहना गलत नहीं जो राजनीति और लोकतंत्र हमारी पहचान थे वही आज समाज को तोड़ने की वजह साबित हो रहे हैं.

इस विवाद की शुरुआत यूँ तो सोमवार को हुई थी जब भीमा-कोरेगांव की 200 साल पुरानी जंग की बरसी के मौके पर महाराष्ट्र में जातिगत तनाव फैल गया. भीमा, पबल और शिकरापुर गांव में दलित और मराठा समुदाय के बीच झड़प हो गई. विवाद की शुरुआत तब हुई थी जब पुणे से करीब 30 किलोमीटर दूर अहमदनगर हाइवे पर पेरने फाटा के पास झड़प में एक शख्स की मौत हो गई थी. खैर अगर वक़्त रहते इसे संभल लिया गया होता तो आज हालत बेकाबू न होते न ही हमें राजनीति के चश्मे से इस मुद्दे को देखने की आवश्यकता होती.

महाराष्ट्र में जो हुआ वह कुछ ऐसा था जैसे हम आपसी प्यार सौहार्द को टाक पर रख कर सिर्फ इसलिए लड़ गए क्योंकि राजनीति के ठेकेदारों ने हमारे लिए एक लकीर खिंच दी जिसमे न हम किसी समाज के रहे, न देश के, न कानून के, अब ऐसे में यहाँ यह समझना आवश्यक है कि हिन्दू राजनीति की बात करने वाली बीजेपी की सरकार रहने के बावजूद ऐसा क्यूँ हुआ और क्या हुआ? अब आपको बताए हैं वह पूरी बात जो आज महाराष्ट्र में हुई. खैर यह नया नहीं है लेकिन खतरनाक है और इसे न रोका गया तो वह समय और वक़्त दूर नहीं जब हम आपस में जूझते नजर आएंगे.

इस मुद्दे में उन सभी के खिलाफ एक्शन लेने की जरुरत है जो यह द्वेष फैला निकल गए. वह भी कम जिम्मेदार नहीं जो सत्ता में बैठे हैं. साथ ही वह मुर्ख ही हैं जो ऐसे मुद्दे पर लड़ें-भिड़े बैठे हैं और इंसानियत के दुशमन बन बैठे हैं. खैर उम्मीद है जल्द इनपर नियंत्रण स्थापित किया जाएगा और संन्य जनजीवन पटरी पर लौटेगा.

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