बिहार समेत देश के कई राज्य भयँकर बाढ़ की चपेट में हैं।लाखों की आबादी पानी के सैलाब में समाई हुई है,घर से बेघर,खुला आसमान,भूखा पेट,बिलखते बच्चे,बर्बाद फसलें,मरते मवेशी कमोबेश यही कहानी है,बाढ़ में डूबे हर उस जगह की जहाँ से गँगा, कोसी,सोन,यमुना जैसी नदियां जिस भी गाँव,कस्बे, शहर से गुजरती हैं।
बिहार के भागलपुर, पटना,बेगूसराय,समेत कई ज़िले इस आपदा की जद में घिरे हुए हैं।हर तरफ तबाही,बर्बादी का मंजर समेटे पानी का सैलाब फैला हुआ है।यह कोई नई कहानी नहीं है बात बहुत पहले की न करके बस चंद साल पहले से ही शुरू करते हैं,कुसहा डैम टुटा था,उत्तर बिहार बह गया था,सीएम थे तब नितीश कुमार और आज भी वही कहानी है,यहाँ सीएम की चर्चा की वजह थोड़ी विस्तार से बताऊँगा,उस साल की बाढ़ ने उत्तर बिहार की न सिर्फ भौगौलिक दशा बदल दी थी बल्कि,बिहार के शोक के रूप में मशहूर कोशी की धारा भी बदल कर रख दी थी.
अब बात उस समय की राजनीती की सत्ता में जदयू गठबंधन की सरकार थी,और केंद्र में कांग्रेस की खूब हवाई दौरे,सर्वेक्षण घोषणाएं और बाढ़ राहत कोष का खेल चला बाद में घोटाला भी सामने आया,सरकार से ज्यादा आम जनता ने सहयोग दिया प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री राहत कोष में खुल कर पैसे आये लेकिन प्रशासनिक हिला हवाली में सब खेल हो गया,इस साल बिहार के कई जिले प्रभावित हैं और नेता सलाह बांटने और हवाई दौरे में लग गए हैं राहत के नाम पे आम जनता को आश्वाशन मिल रहा है.
बीस लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित है ऐसे में राजद अध्यक्ष के बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री विदेश दौरे पर हैं और उनके पिता गंगा की महिमा और पौराणिकता समझाने में लगे हुए हैं,कहते हैं गँगा आपकी रसोई तक पहुंची आप का सौभाग्य है साहब आप भी उसी गँगा और राघोपुर दियारा की गोद में पैदा हुए,पले बढ़े और आज राजनीती की इस मुकाम पर पहुंचे हैं लेकिन आप इस सौभाग्य को क्यों नहीं अपना पा रहे हैं,ज्ञान बाँटना बहुत सरल है,हवाई सर्वेक्षण और केंद्र सरकार के खिलाफ बयानबाज़ी उससे भी कई गुना आसान लेकिन बाढ़ पीड़ितों की सहायता और राहत पहुँचाना आपके लिए सबसे दुर्लभ कार्यों में एक है।
बिहार के मुख्यमंत्री कल प्रधानमंत्री से मिले और राहत और बचाव कार्यों के लिए सहायता की मांग की,ऐसे विशेष दर्जे के अलावा बाढ़ और सूखे प्रभावित पुनर्वास के लिए नितीश कुमार का यह पुराना राग है लेकिन इब सब प्रवचनों और मांगों,बयानों और सर्वेक्षणों के बीच बिहारी जनता बहार से दूर बाढ़ में जिंदगी और मौत से दूर संघर्ष करती नज़र आ रही है।ऐसे में आसरा गँगा मैया के अलावा बस अपने भाग्य और किस्मत का है न जाने कौन सी घडी सब कुछ तबाह,बर्बाद कर जाए लेकिन आस्था की प्रतीक गंगा और धूर्तता की पर्याय राजनीती पर आमलोगों का यह संघर्ष अपने आप में मिशाल है.
बिहार और अन्य बाढ़ पीड़ित इस विपदा से जल्द ही निकल पाने में कामयाब होंगे और राजनीती पुनः अपना सत् मुँह लिए बिना किसी ठोस पहल के वोट मांगने इनके दरवाजे पर दस्तक देगी.अभी न चुनाव हैं,न अब्दुल कलाम यहाँ अब्दुल कलाम की चर्चा की वजह उनके नदियाँ जोड़ो अभियान से है जो उन्होंने 2005 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री को सुझाव स्वरुप दिया था लेकिन राजनीतिक साजिश की शिकार के र्रोप में इस योजना का अंत कर दिया गया वो भी इसके शुरुआत से पहके ऐसे में अब उम्मीद आस्था और उम्मीदों का है।भगवान् इस आपदा,विपदा को सहने की शक्ति और उबरने की छमता प्रदान करें तथा राजनीती की रोटियाँ सेकने वालीं को कुछ शर्म मुयस्सर करें.