हमारे समाज मे दहेज की जो कुरीति है वह अब और तेजी से पनपती और फलती फूलती नजर आ रही है। एक तरफ सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा गढ़ रही है तो दूसरी तरफ यही बेटियां घर की चारदीवारी में घुट-घुट कर दम तोड़ रही हैं। आज हर दिन हमें ऐसी खबरें पढ़ने और सुनने को मिलती हैं जिसमे किसी न किसी महिला की आत्महत्या की खबर होती है लेकिन इस आत्महत्या जैसे गंभीर कदम के पीछे जिम्मेदार होती है घरेलू हिंसा की वह प्रवृति जिसे दहेज लोभियों द्वारा अंजाम दिया जाता है।
भारत में बेटियों को बोझ मानने वाले लोग नही हैं, डरने वाले लोग हैं। उनका डर ऐसे माहौल को देखते हुए स्वभाविक भी है। आज के तथाकथित समाज मे भी ऐसे पैसे और दहेज के भूखे हैं जो हर तरफ से परिपूर्ण होने के बावजूद दहेज के लोभ से खुद को दूर नही कर पा रहे और इसके लिए वह मारपीट करने से भी बाज नही आते, जिसका अंजाम यह होता है कि एक महिला या बेटी घर वालों को अपनी पीड़ा बताने से आसान मौत को गले लगाना समझती है। हम किस आधुनिक समाज मे हैं और क्या प्रगति कर रहे हैं, ऐसे मामलों के सामने आने के बाद यह समझना कठिन हो जाता है। आज हमें इन मामलों में गंभीर होने और ज्यादा आगे की सोचने की जरूरत है तभी बेटियां, महिलाएं एक सुरक्षित माहौल में जी सकेंगी और आगे बढ़ सकेंगी।