राजनीति ने प्यार और सौहार्द को दुश्मनी और रंजिश में बदल दिया, कैसे मने वैलेंटाइन डे

प्यार का महीना फरवरी आ चूका है, वैलेंटाइन डे को खास बनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी है. दुनिया से बेखबर प्रेमी जोड़े आज से वैलेंटाइन वीक की तैयारी में व्यस्त हो चुके हैं लेकिन भारत जैसे देश में जहाँ वैलेंटाइन की परंपरा बिल्कुल नई है,वहां इसका एक अलग उत्साह होता है हालांकि इसे पाश्चात्य संस्कृति का हिस्सा बता विरोध करने वाले भी कई हैं. राजनीति की गन्दी नियत और समाज की परम्परा के नाम पर गन्दी नीति ने प्यार जैसे पवित्र शब्द को भी नहीं छोड़ा यही वजह है कि धर्म जाति और संप्रदाय के बंधन ने आज क्राइम के ग्राफ को बढ़ा दिया, खाफ पंचायत को नहीं रोका, ओनर किलिंग जैसे मामले आम हो गए और प्यार पर पहरा जारी रहा. जब तक धर्म और मजहब के नाम पर अंकित मरते रहेंगे, प्यार का दिवस हम कैसे मनाएंगे?

हमारी सोच नई है, हम आधुनिकता का दंभ भरते हैं लेकिन आज समाज की हालत वैसी है कि दूसरा करे तो हम बधाई देते हैं लेकिन अपने घर पर बात आते ही हम सबसे पहले विरोधी होते हैं, कुल मिलाकर आज भी माहौल वही है जो भगत सिंह के वक़्त था उस समय लोग कहते थे कि वह माँ महान है जिसने भगत सिंह को जन्म दिया लेकिन कोई माँ या परिवार यह नहीं चाहता था कि भगत सिंह उनके घर पैदा हो, यह कहावत सालों से सुनता आया हूँ. आज प्यार पर पहरे के बाद यही चीज याद आती है. मुद्दे बदले, देश में कई बदलाव आये, हम आज़ाद हुए अधिकार मिले, आधुनिक हुए लेकिन जब बात धर्म,मजहब और जाति की आई तो राजनीति की आड़ में हम हैवान बन बैठे.

यह वैलेंटाइन न मनाने के पीछे वजह और तगड़ी है दो दिनों पहले की ही बात है जब अंकित प्यार की वजह से सरेआम मार दिया गया. क्या गलती थी उसकी? बस यही की उसने दुसरे मजहब की लड़की से प्यार किया ? क्या यह गलत था? अगर गलत यह है तो हर वह चीज गलत है जो आज़ादी से लेकर इतिहास में दर्ज है. धर्म और मजहब ही करना था तो आज़ादी के वक़्त बंटवारे के समय या संविधान लिखते हुए तय कर देते ? न कर सके तो सत्तर साल में कोई ऐसा कानून सांसद से बनवा देते? वह भी न हुआ तो सुरक्षा दे देते ताकि न केरल में लव जिहाद होता, न मुज्ज़फरनगर में दंगा होता, न सर्वोच्च न्यायलय को रात में खोल कर किसी धर्म विशेष के लिए सुनवाई करनी पड़ती न कश्मीर के लिए लड़ना पड़ता, न राम के लिए कुछ विवाद होता न मस्जिद न मदरसे के नाम पर हम लड़ रहे होते? सोचिये कैसे मने इस गन्दी राजनीति से प्रेरित होकर वैलेंटाइन, जब हम खुद एक दुसरे के विरोधी बन बैठे, जात और धर्म के नाम पर, मजहब के नाम पर, समर्थन के नाम पर हम एक दुसरे से दुश्मनी मोल बैठे? सोचियेगा कैसे मने वैलेंटाइन, कैसे हो प्यार?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *