मई और जून का महीना विद्यार्थियों, शिक्षकों और परिवार से जुड़े लोगों के लिए काफी अहम् महीने होते है. यह वह महीने हैं जब बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे घोषित किए जाते हैं. इन दिनों में कहीं ख़ुशी कहीं गम का माहौल होता है. जो बच्चे अच्छा कर जाते हैं वह परिवार,विद्यालय,कोचिंग,रिश्तेदारी,मोहल्ला और समाज के साथ राज्य और देश में भी सुर्खियां बटोर जाते हैं. दूसरी तरफ वह बच्चे होते हैं जो या तो औसत नतीजों के साथ उम्मीदों अरमानों को पूरा करने में विफल हो जाते हैं या कम नंबर स्कोर कर पाते हैं. अब इन दो बातों को समझना यहाँ काफी जरुरी और आवश्यक हो जाता है. पहली बात में जहाँ बच्चे मेहनत लगन के नतीजों से अचानक सुर्ख़ियों में आते हैं वहीँ दूसरी तरफ फेल या कम नंबर लाने वाले बच्चे परिवार और समाज की नजरों में खुद को गिरा हुआ समझने लग जाते हैं.
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वह 90 प्रतिशत से ज्यादा लाने वालों की सूचि में नहीं होते हैं. समाज उन्हें औसत या उससे नीचे दर्जे का एक कमजोर विद्यार्थी मान बैठता है. ऐसी व्यवस्था किस समाज को सही दिशा दे सकती है यह सोचने की जरुरत है. क्या सिर्फ 90 या 99 फीसदी वाले बच्चे ही अच्छे इंजीनियर,डॉक्टर,अधिकारी या आईएस और आईपीएस बन सकते हैं? जी नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है. यह महज एक कुंठित सोच है. यह जबरदस्ती पाली हुई वह सोच है जो उम्मीदों और अरमानों की अर्थी एक झटके में उठाने को बाध्य करने जैसे फैसले करने पर बच्चों को मजबूर कर देती है. भरोसा न हो तो नतीजों के आने के बाद आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं और ख़बरों पर ध्यान दीजिये. कोटा से हर साल आने वाले आंकड़ों पर ध्यान दीजिये. दिल्ली के लक्ष्मी नगर और मुखर्जीनगर में चल रही आईएस और आईपीएस बनाने की फ़र्ज़ी फैक्ट्रियों के रिकॉर्ड और हर साल टूटने वाले सपनों और अरमानों की दर्द भरी कहानी किसी से समझिये. शायद सब कुछ खुद बी खुद क्लियर हो जायेगा.
अब जब बात निकली है कि क्या सफलता सिर्फ डिग्री या परसेंटेज की मोहताज होती है तो जवाब है नहीं,बिलकुल भी नहीं. भारत भर से ही सिर्फ उदाहरण लें और बड़े उद्योगपतियों का महज लें तो घनश्याम दस बिरला,रामकृष्ण डालमिया,एमडीएच के महाशय धर्मपाल गुलाटी,वालचंद हीराचंद जैसे लोग शायद इतना बड़ा बिजनेस का साम्राज्य न खड़ा कर पाते. आपको जान कर आश्चर्य होगा ऊपर लिखे सभी नामों की उपलब्धि पढाई और डिग्री के मामले में शून्य के बराबर है.
पढ़ें ऐसे लोगों के नाम जो पढाई में औसत रहे-
अब बात अलग-अलग क्षेत्रों में झंडे गाड़ने वाले और लोगों की करें तो भारत रत्न सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, इंदिरा गाँधी, गोल्फ स्टार टाइगर वुड्स,माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स, करूणानिधि, ऐश्वर्या राय बच्चन, दीपिका पादुकोण, लता मंगेशकर, थॉमस एडिसन,अल्बर्ट आइंस्टीन शकीरा,विल स्मिथ,विलियम शेक्सपियर,जॉर्ज बर्नार्ड शॉ जैसे लोगों ने अपने-अपने क्षेत्र में बेशक कमाल किया है और बेमिशाल हैं लेकिन आपको जान कर आश्चर्य होगा इनमे से कई बिल्कुल पढ़े लिखे नहीं हैं,कई कॉलेज ड्राप आउट हैं, कई ने सिर्फ 10 वीं तक की पढाई की है और कई औसत नंबरों से अपना ग्रेजुएशन कर सके.
कुल मिलाकर यह बताने का हमारा मकसद यह है कि बच्चों को उनके मन के मुताबिक काम और शौक के मुताबिक भविष्य सोचने की आज़ादी दीजिये. नंबरों के खेल में मत उलझिए. नंबर और आंकड़ों से सिर्फ डिग्री अच्छी हो सकती है लेकिन जानकारी और सही समय पर सही सोच के साथ सही फैसले लेने से जिंदगी में वह एक अलग मुकाम बना सकता है. दबाव देने से नंबर आये न आएं जिंदगी बोझिल और उदास जरूर होती है. इन चीजों को समझें और प्रोत्साहित करें. सफल बच्चों को बधाई और असफल बच्चों को बस यही सलाह की असफलता महज इतना सिखाती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ. इसलिए दोबारा लगिए और इतिहास रच दीजिये.