दिसंबर के अंतिम दिनों में जब एक अजनबी बीमारी ने चीन के वुहान शहर में दस्तक दी तब बाकी देश सुकून और शांति से विकास, जीडीपी, रोजगार, सैन्य ताकत इत्यादि की बात में मशगूल थे। मीडिया न्यू ईयर सेलिब्रेशन और हाड़ कंपाने वाली ठंड दिखाने में व्यस्त थी। आप और मैं यह सोचने में व्यस्त थे कि अभी अगर न्यू ईयर सेलिब्रेशन के लिए एक हफ्ते की छुट्टी मिल जाती तो मज़ा ही आ जाता। हालांकि ऐसा कम से कम मेरे साथ नही हुआ। बाकी दिनों की तरह मैं एक जनवरी को भी काम कर रहा था जब आप और बाकी दुनिया जश्न में डूबी थी। उधर चीन वुहान की स्थिति सुधारने में लगा था। एक के बाद एक लोग अस्पताल पहुंचने लगे। जल्द ही अंदाज़ हो चला कि यह वायरस इंसान से इंसान में फैलता है।

थोड़ी बहुत मीडिया कवरेज मिलनी शुरू हुई। दुनिया का ध्यान इस ओर गया तो सही लेकिन इसके बावजूद किसी ने इसे शायद ही इतनी गंभीरता से लिया जितनी गंभीरता से लिया जाना था। खैर दिन, हफ्ते महीने बीते वुहान बंद रहा, लॉकडाउन शब्द सामने आया। चीन ने रातों रात अस्पताल बनाने सहित कई कड़े कदम उठाए और इस बीमारी पर बहुत हद तक काबू पा लिया। हालांकि तब तक दुनिया के बाकी देश इसकी जद में आ चुके थे। फरवरी के अंत और मार्च के शुरुआती हफ़्तों में कोरोना का यह वायरस दुनिया के लगभग एक सौ नब्बे देशों में फैल चुका था। इटली में मौत का तांडव शुरू हो गया, ईरान में लोग इसके शिकार होने लगे, स्पेन और फ्रांस की सड़कें सुनसान हो गई और भारत सरकार भी तब तक तैयारियों में लग गई।

इन सब के बीच कई बातें, कई यादें गुजरी होंगी। कुछ छोटे बड़े सेलिब्रेशन के और मौके आये होंगे। आपने छुट्टी मांगी भी होगी, कइयों को मिली होगी, कइयों को न मिली होगी। खैर मार्च के शुरुआत में भारत मे कोरोना ने दस्तक दे दी। सरकारें सक्रिय हुईं और वर्क फ्रॉम होम का कल्चर शुरू होने लगा। बाकी लोगों के लिए या कंपनियों के लिए शायद नया हो लेकिन हमारे यहां यह कम से कम तीन साल पुराना है, हम इसके आदि हैं। हमारे लिए यह मौका जैसे पतझड़ में वसंत लेन वाला था। सब अपने-अपने घर हो लिए। जब बाकी कंपनियां सर खपा रही थी और कोरोना के उंगलियों पर गिने जाने मात्र केस भारत मे पाए गए थे तब तक हम एक हफ्ता वर्क फ्रॉम होम कर चुके थे। होली आई और गई वर्क फ्रॉम होम चलता रहा। कोरोना का दायरा बढ़ा इसी के साथ 31 मार्च तक वर्क फ्रॉम होम बढ़ा दिया गया। ध्यान रहे तब तक सरकार ने ऐसी कोई गाइडलाइन जारी नही की थी।

यह मेरे लिए कम से कम बिन मांगी मुराद पूरी होने जैसा था। टूटे पैर के साथ मैं घर कूच कर गया। 17 मार्च को घर आया और वर्क फ्रॉम होम जारी रहा। उसके बाद कोरोना के मरीजों की संख्या में वृद्धि होती रही और भारत के प्रधानमंत्री देश को संबोधित करने पहुंचे। 23 मार्च को जनता कर्फ्यू का एलान किया। इसके बाद दुबारा वह देश के नाम संबोधन देने आए और लॉकडाउन का यह दायरा 21 दिनों के लिए बढ़ा दिया गया। दुनिया भर की सरकारों के पास इसके अलावा दूसरा विकल्प फिलहाल नही है।

अब कोरोना के आने के बाद समाज, शहर, गांव, राजनीति, अर्थव्यवस्था को लेकर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं। हर क्षेत्र के दिग्गज इसका आकलन अपने हिसाब से कर रहे हैं। हालांकि मेरा नजरिया थोड़ा अलग है। कोरोना से जंग जीतने के लिए बचाव और जागरूकता जरूरी है। इसी वजह से लॉकडाउन और वर्क फ्रॉम होम जैसे विकल्प ढूंढने पड़े। कहते हैं आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। यह दो अलग शब्द शायद इसलिए आज चर्चा में हैं। अब मैं अपने नजरिए से देखूं तो कोरोना की वजह से बिना छुट्टी मांगे मैं घर आ गया, काम वहां भी करता था, यहां से करता हूँ। घर से बल्कि ज्यादा देर और सुकून से करता हूँ। देर से पहुंचने देर से निकलने की झंझट नही है। माँ-पापा साथ हैं। सोशल डिस्टेनसिंग के बीच दूरी बनाने की जरूरत नही, खेत खलिहान सब वीरान हैं। यह गांव है यहां पढ़ें लिखे लोग बेशक कम हैं लेकिन समझदारी और अनुभव में शहरों से कहीं आगे हैं।

इस लॉकडाउन ने मुझे सालों से अलमीरा में बंद किताबों को फिर से खोलने का मौका दिया है। बहुत कुछ लिखने की फुरसत दी है। खाना बनाने का मेरा अनुभव यूं तो दस साल पुराना है लेकिन इसे और निखारने के इससे बेहतर समय शायद न मिले। इसके अलावा न कोई घर का काम, न दफ्तर जाने का झंझट, न बैंक न ब्लॉक इस बार सब बंद हैं तो सोता भी भरपूर हूँ। यूं कहें नौकरी के अलावा समय के अभाव में हर वह काम जो गैर जरूरी लगता था, वह इस लॉकडाउन में पूरा हो रहा है। इसका अलग मजा है। कर के देखिए। लॉकडाउन ने हमें जीने को भरपूर समय दिया है, जब सब ठीक होगा आप उसी भेड़ चाल में उलझ जाएंगे, फिर सरपट भागने लगेंगे, फिर वक़्त का अभाव होगा, इसलिए इस वक़्त का सदुपयोग कीजिये बोर होने का बहाना छोड़िए। हर बात में नकारात्मक नही सोचते, अर्थव्यवस्था आप और हम कल मिलकर सुधार लेंगे। पहले दूर हो चुके परिवार से तो जुड़ लीजिये। जो अच्छा हो सके वह तो कर लीजिए। जागरूक रहिए, सरकार के नियमों का पालन करिए। धन्यवाद।
