गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का आज लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वह 63 साल के थे। फरवरी 2018 में बीमारी का पता चलने के बाद उन्होंने गोवा, मुंबई, दिल्ली और न्यूयॉर्क के अस्पतालों में इलाज कराया था। आखिरकार वह 17 मार्च को वे जिंदगी की जंग हार गए। छोटे से राज्य के बड़े बेदाग नेता मनोहर पर्रिकर का निधन हो गया। राजनीति की कलंकित काल कोठरी में भी सफेद रहने वाले मनोहर मन और छवि वाले पर्रिकर को नमन। आपका योगदान अतुलनीय है, आपकी सादगी, आपकी ईमानदारी आने वाले वक्त में मिसाल होगी। सादर श्रद्धांजलि।

मनोहर पर्रिकर ने साल 1978 में IIT मुंबई से अपना ग्रेजुएशन किया था। वह काफी मेधावी थे।मनोहर पर्रिकर भारत के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने IIT की पढ़ाई की थी। गोवा में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने थे। 1994 में उन्हें गोवा की द्वितीय व्यवस्थापिका के लिए चुना गया था। 24 अक्टूबर 2000 को पर्रिकर ने गोवा के मुख्यमंत्री के रूप अपना कार्य शुरू कर दिया। लेकिन किन्हीं कारणों से उनका ये कार्यकाल ज्यादा समय तक नहीं चल पाया और 27 फरवरी 2002 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 5 जून 2002 को उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया।
2005 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार मिली। पर्रिकर को इस्तीफा देना पड़ा लेकिन इसके पांच साल बाद साल 2012 में गोवा में हुए चुनाव में फिर जीत मिली और फिर से भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया।2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को बम्पर जीत मिली और पार्टी केंद्र में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई। इसके जब देश के रक्षा मंत्री को चुनने की बारी आई, तो भाजपा की पहली पसंद पर्रिकर बने और उन्हें देश का रक्षा मंत्री बना दिया गया। देश के रक्षा मंत्री बनने के लिए पर्रीकर को अपना मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा और उनकी जगह लक्ष्मीकांत को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया।
मनोहर पर्रिकर के रक्षा मंत्री रहते हुए भारतीय सेना ने दो बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था। 2015 में म्यांमार की सीमा में भारतीय पैराकमांडो द्वारा घुसकर उग्रवादियों को मार गिराना और नवंबर 2017 में हुई सर्जिकल स्ट्राइक। राफेल जैसी बड़ी सैन्य डील भी उन्ही के कार्यकाल में सम्पन्न हुई।गोवा में विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु परिणाम आने के बाद बीजेपी ने गठबंधन के दलों को टूटने से बचाने के लिए पर्रिकर को वापस गोवा भेज दिया। उनका राजनीतिक, निजी और सार्वजनिक जीवन विवादों से दूर रहा। ऐसे राजनीति में जब हर नेता अपराध, घोटाले और कई अन्य आरोपों से घिरा हुआ है, ऐसे में पर्रिकर सबसे अलग सबसे बेदाग थे। यही उनकी लोकप्रियता का कारण था। यही स्वीकार्यता की वजह थी।