बिहार में राजनीतिक बदलाव की बयार,महागठबन्धन में बढ़ रही है दरार

राजनीति के रिसर्च सेंटर कहे जाने वाले बिहार की राजनीति में इन दिनों सब कुछ ठीक नही चल रहा है।खबरों और सूत्रों की मानें तो बड़े भाई लालू और छोटे भाई नीतीश फिर से अलग होने की कगार पर खड़े हैं।हालांकि महागठबंधन बनने के बाद ऐसी खबरें कई बार सामने आई हैं लेकिन इस बार आ रही खबर में वजन है,तथ्य है,संकेत है औऱ इन सबसे अलग तल्खी भी है। दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी का दौर भी जारी है।बेशक बयानबाजी और वाकयुद्ध के इस दौर में किसी भी दल के प्रमुख नेता शामिल नही हैं लेकिन इतना तो तय है कि दोनों नेताओं की सहमति से ही यह सब हो रहा है।

यह पूरा विवाद यूं तो राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश कुमार द्वारा रामनाथ कोविंद के समर्थन के बाद शुरू हुआ माना जा रहा है।लेकिन इससे पहले लालू की मनमानी,और बीजेपी नेता सुशील मोदी द्वारा लालू और उनके परिवार पर लगाये गए एक के बाद एक आरोप ने भी नीतीश को असहज किया है।इसके अलावा मुद्दों से परे लालू सिर्फ बीजेपी और मोदी विरोध की बातों में शामिल रहे जबकि नीतीश की रणनीति और राजनीति मुद्दों पर केंद्रित रही है।नीतीश जहां बीजेपी सरकार के नोटबंदी के समर्थन में रहे थे वहीं लालू इसके खिलाफ जमकर बोलते नजर आए थे।इसके अलावा पिछले कुछ समय से नीतीश-मोदी की नजदीकी भी चर्चा में रही थी।

हाल ही में नीतीश ने एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद को समर्थन देकर सभी को चौंका दिया था। सबसे ख़ास बात यह है कि नीतीश इस चुनाव के लिए विपक्षी एकता की बात करते रहे थे लेकिन विपक्ष की बैठक से ठीक पहले उनके ऐलान ने सभी को हैरत में डाल दिया था।नीतीश के समर्थन की पीछे दो बातों को वजह माना जा रहा था जिसमे पहली बात यह थी कि कोविंद बिहार के राज्यपाल थे और नीतीश से उनके रिश्ते अच्छे रहे थे। दूसरी बात यह कि कोविंद दलित वर्ग से आते हैं।इसके अलावा नीतीश और मोदी की बढ़ती नजदीकियां भी कोविंद को नीतीश से मिले समर्थन के पीछे की बड़ी वजह मानी जा रही है।

लालू जहां चारा घोटाले में पहले से मुश्किलों में घिरे हैं वहीं सुशील मोदी के आरोपों के बाद उनपर सीबीआई और आयकर विभाग के कसते शिकंजे के बीच नीतीश-लालू में बढ़ती तल्खी महागठबंधन के साथ कांग्रेस के राजनीतिक  भविष्य के लिए भी चिंता का सबब बन सकती है।इसके अलावा अगर नीतीश फिर से अपने पुराने सहयोगी बीजेपी का दामन थाम सत्ता में लौटते हैं तो स्वच्छ छवि और सुशासन के तमगे से लैस नीतीश कांग्रेस और लालू की राजनीति के लिए बड़ा खतरा भी बन सकते हैं।

गौरतलब है कि नीतीश कुमार बीजेपी के सहयोग से ही पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन दूसरे कार्यकाल के दौरान बीजेपी ने लोकसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया जिसके बाद नीतीश ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लालू से हाथ मिला लिया था।यह फार्मूला कामयाब भी हुआ और राजद,जदयू और कांग्रेस के महागठबंधन में लोगों ने भरोसा दिखाते हुए सत्ता सौंप दी लेकिन अब इस गठबंधन की गांठ खुलती नजर आ रही है।और हो न हो नीतीश एक बार फिर बीजेपी के साथ लौट सकते हैं लेकिन अभी तक यह बात बस अटकलों तक सीमित है लेकिन अगर ऐसी तल्खी और बयानबाजी जारी रही तो यह अटकल हकीकत में भी बदलती दिख सकती है।

#हमारी_राय

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