चुनावी रणभेरी के बाद जनता की बारी

उत्तरप्रदेश सहित पाँच राज्यों में चुनावों की घोषणा आज हो गई,इसी के साथ पंजाब,गोवा,मणिपुर,यूपी और उत्तराखंड में आचार संघिता भी लागू हो गई है।चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी ने इसकी जानकारी देते हुए इस बार कई नए प्रयोग करने की भी घोषणा की है।ये तो हो गई चुनावी रणवेरी की बात लेकिन अब आगे क्या?राज्य जहाँ चुनाव होने हैं वहां कौन किस पर भारी और किसकी बनेगी सरकार क्या होगी रणनीति ये तमाम सवाल हैं जनता भी कंफ्यूज है और परेशान भी है।

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ये चुनाव हर राज्य के सत्ताधारी पार्टी के अलावा केंद्र की बीजेपी सरकार और लुप्त होती जा रही कांग्रेस के लिए काफी अहम् हैं और काफी मायने रखते हैं लेकिन उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी सत्ताधारी है,आपसी कलह से ग्रस्त है,कांग्रेस का जनाधार नहीं है,बीजेपी नोटबंदी के बाद चुनाव का सामना करेगी और मायावती के पास दलित के अलावा कोई मुद्दा नहीं है।उत्तराखंड में जुगाड़ की कांग्रेस सरकार,गोवा में बीजेपी सरकार,पंजाब में अकाली बीजेपी गठबंधन सरकार जनता का भरोसा जीत पाएंगी ऐसा लगता नहीं है,इसके पीछे की वजह आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की एंट्री के अलावा इन पार्टियों से जनता का मोह भंग होने भी है।ये हो गई पार्टियों की बात,यानी चुनाव की घोषणा और आसान शब्दों में राज और नीति के साथ नियत की बात भी समाप्त हो गई है।अब मुद्दे की बात करते हैं।

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सभी राज्यों में विकास का मुद्दा होगा जो पिछले कई सालों से है,लेकिन इसके अलावा जो सभी राज्यों में समान रहेंगे वे हैं नोटबंदी,केंद्र सरकार से खुश हैं या नहीं,राज्य सरकार के कार्य,और जरुरी और कई अहम् मुद्दे जिनमे बिजली,पानी,सड़क हमेशा की तरह होंगे,अब लोकल मुद्दों की बात जिसमे से यूपी में समाजवादी संग्राम,काम बोलता है कैंपेन,अखिलेश की छवि,मोदी जी की छवि,बीजेपी पर भरोसा कायम रखना याद रहे सबसे ज्यादा सांसद यूपी से हैं बीजेपी के,दलित राग,और अंत में विकास इत्यादि हैं।ये हो गई मुद्दों की बात इसके बाद अब ये चुनाव क्यों अहम् हैं?

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ये चुनाव आने वाले समय और सत्ता की रुपरेखा तय करेंगे यूपी और बिहार को राजनीती का रिसर्च सेंटर कहा और माना जाता है इसलिए जो भी नतीजे आएंगे इससे राजनीती और सत्ता दोनों प्रभावित होंगे।सबसे बडा राज्य और उसके बाद कई राज्यों के चुनाव एक साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे,बिहार में मुँह की खा चुकी बीजेपी फूँक फूँक कर कदम रख रही है और साथ ही संयम और धैर्य भी बरत रही है।अब जनता की बात पर आते हैं,एक वजह जिससे बीजेपी भारी और कमजोर दोनों पड़ सकती है वो है नोटबंदी ऐसा इसलिए कयुनकी जनता ने जितना संयम बरता है कहीं वो आने वाला खतरा तो नहीं या अगर खुश है तो बीजेपी के बल्ले बल्ले इसके अलावा सपा और अखिलेश की छवि भी फायदा या नुकसान दोनों कराने में सक्षम है अब देखना है जनता का मूड तब तक इंतजार कीजिये 11 मार्च का,आगे की कहानी कभी बाद में लिखता हूँ।

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