कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी का पूरा ध्यान इस वक़्त बीजेपी और मोदी के खिलाफ है। वह हर हाल में इन्ही दोनों से पार पाने को आतुर हैं। इसके लिए हर संभव प्रयास में लगे भी हैं लेकिन हाल के दिनों में राजनीतिक उठापटक और गठबंधन सहित विरोधियों के एक होने की खबरों पर ध्यान दें तो यही समझ आता है कि कांग्रेस के लिए बीजेपी नही बल्कि सरदर्द का विषय कुछ और बनने जा रहा है। उपचुनाव से लेकर अलग-अलग क्षेत्रीय दलों का साथ आना भी इसी की तरफ इशारा कर रहा है। हालांकि कांग्रेस इनके नजदीक है इसके बावजूद अलग-थलग पड़ सकती है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि उपचुनाव के जो नतीजे आये वह कांग्रेस के लिए किसी सीख से कम नही हैं। कांग्रेस सपा के साथ गठबंधन में रहते हुए एकला चली और जमानत तक जब्त करा बैठी। वहीं बिहार के जहानाबाद में आरजेडी के साथ गठबंधन में रहे भी यही हुआ। इससे यह साफ है कि फिलहाल किसी भी चुनाव में अकेले जीत दर्ज करना कांग्रेस के बूते की बात नही है। और तो और उसे किसी न किसी क्षेत्रीय दल का सहारा चाहिए होगा।
विपक्ष के साथ दिक्कत यह है कि सर्वमान्य नेता कौन बनेगा जिसजे कांग्रेस भी स्वीकार करे, साथ ही अन्य दल भी राहुल सहित कांग्रेस के किसी अन्य नेता के पक्ष में स्वीकार्यता देने के मूड में नही हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए इससे पार पाना मुश्किल होगा साथ ही बिना इसके बीजेपी के खिलाफ खड़ा होना भी व्यर्थ ही है।