आज जब भी हम अपने आसपास होने वाली घटनाओं या खबरों के बीच से गुजरते हैं तो हर दिन कहीं न कहीं, किसी न किसी के आत्महत्या की खबर उसमे जरूर होती है। इससे प्रभावित तो हर वर्ग है लेकिन खास कर युवाओं में यह प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। आंकड़े भी यही कहते हैं कि आत्महत्या करने वाले सबसे ज्यादा लोग युवा वर्ग के हैं। ऐसे में यह एक गंभीर प्रश्न है कि आखिर जिंदगी के संघर्ष से मौत ज्यादा आसान कैसे हो सकती है? क्यों हम ईश्वर द्वारा दी गई जिंदगी को अपनी अधीरता की वजह से गंवा रहे हैं।
आज हम ज्यादा जल्दी और तेजी से आगे बढ़ने के चक्कर मे लड़खड़ा रहे हैं, बहक रहे हैं और न संभल पा रहे हैं न ही संभाल पा रहे हैं। हम सबसे ज्यादा आज खुद से ही दुखी हैं। क्यों? क्योंकि हम अपने काम और दुनियादारी में इतने उलझे हुए हैं कि खुद अपने लिए ही समय नही है। इंसान को अगर खुद के लिए सोचने, चीजों को समझने और उनसे निपटने का मौका मिले तो वह बिल्कुल संघर्ष कर सकता है लेकिन यहीं हम मार खा रहे हैं और हर छोटी बड़ी परेशानी में डिप्रेशन में चले जाते हैं जिसकी आखिरी मंजिल मौत होती है।
ऐसे फैसलों से पहले हम आगे पीछे कुछ नही सोचते न माँ-बाप की, न दोस्त की न परिवार की, यही कमी है। कुल मिलाकर कहें तो जिंदगी से खूबसूरत कुछ नही, समस्या का निदान ढूंढिये, खुद को समस्या मत समझिए, बहुत आसान है। कर के देखिए सब कुछ इंसान ही करता है।