भारत और पाकिस्तान,दुनिया के दो ऐसे मुल्क जिन्हें आज़ादी एक ही दिन मिली। दो ऐसे मुल्क जो दुनिया के सबसे कट्टर दुश्मन कहे जा सकते हैं। दो ऐसे मुल्क जो आज़ादी की जंग में एक रहे लेकिन जब आज़ादी मिली तो बिछड़ गए। दो ऐसे मुल्क जिनकी पहचान आज बिल्कुल अलग है। दो ऐसे मुल्क जो चलना एक राह पर चाहते थे लेकिन आज रास्ते और मंजिलें अलग हो गई हैं। अब सोचिए कि अगर यह विभाजन न हुआ होता तो कितना अच्छा होता? अब सोचिए पाकिस्तान के कायदे आज़म जिन्ना जिन्हें इस बंटवारे का श्रेय जाता है अगर वह न होते तो क्या हुआ होता? खैर सोच के सब अच्छा लगता है। एक खूबसूरत सा नक्शा मानस पटल पर अंकित होता है। जिसमे भारत-पाक के साथ बांग्लादेश भी भारत के साथ एक मुल्क के रूप में नजर आते हैं।
अब आइये बताएं कि आज अचानक यह बातें क्यों सामने आने लगी हैं। बातें पुरानी हैं लेकिन कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है और उसकी बातें हर इंसान के लिए कुछ न कुछ बदलाव की वाहक बनती हैं। एक किताब की चर्चा इन दिनों फिर से है। यह किताब है भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ में विशेष सचिव रहे तिलक देवेशर की ‘पाकिस्तान एट द हेल्म’, इस किताब में वह पाकिस्तान के शासकों और राजनयिकों पर कई टिप्पणियां लिखते हैं। शुरुआत में बताया गया है कि ‘1947 में भारत पाकिस्तान की आज़ादी से एक महीने पहले लॉर्ड माउंटबेटन ने जिन्ना को भारत पाकिस्तान के संयुक्त गवर्नर जनरल के लिए राज़ी करने की कोशिश की थी। हालांकि इसका कोई मतलब नही निकला।
इसी किताब में जिक्र है कि जिन्ना के स्वास्थ्य को लेकर अगर भारत के बड़े नेताओं को पता होता शायद वह आज़ादी की तारीख को लेकर और वक़्त मांगते। आपको बता दें कि आजादी का एलान फरवरी 1948 में होना था। बाद में जिन्ना अड़ गए और 6 महीने पहले अगस्त में ही इसका ऐलान हुआ। इसी के साथ बंटवारा भी हो गया। उनके ऐसा करने के पीछे थी जिन्ना की वह गंभीर बीमारी,जिसके बारे में वह जान चुके थे। वह फेफड़े की गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। बहुत कम लोगों को पता था कि दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने से पहले जिन्ना एक जानलेवा बीमारी की गिरफ़्त में आ चुके थे। उनके डॉक्टर जाल पटेल ने जब उनका एक्सरे लिया तो पाया कि उनके फेफड़ों पर चकत्ते पड़ गए हैं, लेकिन उन्होंने इस बात को गुप्त रखा। बाद में पाकिस्तान के बंटवारे के कुछ दिन बाद ही मार्च 1948 में वह चल बसे। ऐसे में यह माना जाता है कि मुस्लिम लीग में जिन्ना के अलावा और किसी नेता में वह तेवर नही थे जो उनके न रहते पाकिस्तान की मांग पूरी करा सकता था। ऐसे में जिन्ना की बीमारी का अगर पता होता तो शायद फरवरी में आज़ादी के लिए भारतीय नेता अड़ जाते और बंटवारा टल जाता। हालांकि ऐसा हो न सका!