उत्तरप्रदेश के बागपत से 9 जुलाई 2018 की सुबह एक खबर आई। यह खबर काफी बड़ी और अहम थी। यह वह खबर थी जिसने न सिर्फ योगी सरकार के कानून व्यवस्था के दुरुस्त होने के वादे की कलई खोल दी थी बल्कि उस आशंका को भी सही साबित कर दिया जिसमें उस दिन हुए कांड के बारे में पहले ही बताया जा चुका था।
यह खबर थी पूर्वांचल में कभी खौफ का नाम रहे मुख्तार अंसारी के दाएं हाथ और गाजीपुर के मोहम्दाबाद से विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोपी मुन्ना बजरंगी की हत्या की। मुन्ना बजरंगी को बागपत जेल में गोली मार दी गई थी। यूँ तो इसे आपसी विवाद बताया गया लेकिन कहीं न कहीं यह शक और आशंका भी प्रबल थी कि इसके पीछे बदले की आग या राजनीति भी हो सकती है।
मुन्ना बजरंगी कोई ऐसा-वैसा नाम नही था। कभी उसकी धमक ऐसी थी कि पूर्वांचल में उसकी तूती बोलती थी। ठेकेदार उसकी आहट से ही कुर्सी और ठेके छोड़ देते थे। नेता उसके नाम से थर्राते थे। वसूली और मर्डर में मुन्ना बजरंगी सब से आगे था। हो भी क्यों न? मुख्तार अंसारी का साथ और हाथ जो उसके साथ था।
इन्ही सब के बीच उसकी पकड़ तब ढीली पड़ने लगी जब पूर्वांचल में उदय हुआ भूमिहारों के चहेते नेता और तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय का, उनकी पकड़ और लोकप्रियता दोनो तेजी से बढ़ी। यही मुन्ना और मुख्तार दोनो को खटकने लगा और कृष्णानंद राय की हत्या की पटकथा लिख दी गई।
मुख्तार अंसारी से इशारा पाते ही मुन्ना बजरंगी ने हत्याकांड को अंजाम देने का फूलप्रूफ प्लान बनाया। 2005 में एक दिन जब एक क्रिकेट मैच के उद्घाटन के लिए कृष्णानंद राय जा रहे थे उसी दौरान उनकी हत्या की योजना को अंजाम दिया गया। उनकी कार पर 500-600 गोलियां मारी गई। लॉशों कि पहचान मुश्किल थी। गाड़ी में छेद ही छेद नजर आ रहे थे। पोस्टमार्टम के दौरान सभी छह लॉशों से तकरीबन 70-80 गोलियां निकाली गई।
यह पूर्वांचल के सबसे विभत्स हत्याकांड में से एक था। सियाशी तूफान उठ खड़ा हुआ और इसी हत्याकांड के बाद मुन्ना बजरंगी मोस्ट वांटेड बन गया। 20 से ज्यादा हत्याकांड में शामिल रहा मुन्ना अब यूपी के सबसे खूंखार डॉन के रूप में सामने आ चुका था। हालांकि उसे यह पता था कि कृष्णानंद राय के बाद उनके सहयोगी चुप नही बैठेंगे। इसी डर ने उसे पूर्वांचल छोड़ने पर मजबूर कर दिया। उसने दिल्ली में आश्रय लिया। पकड़ा गया और जेल में था।
उसकी मौत से एक दिन पहले ही उसे झांसी से बागपत एक केस के सिलसिले में पेशी के लिए लाया गया था। यहां उसका विवाद उत्तराखंड के मोस्ट वांटेड डॉन सुनील राठी से हुआ और ताव में राठी ने मुन्ना को गोलियों से छलनी कर दिया। इस तरह एक डॉन का अंत हो गया लेकिन इसके पीछे कई सवाल उठ खड़े हुए। इन सवालों में सबसे बड़ा सवाल क्या यह महज आपसी विवाद था या जैसा कि मुन्ना की पत्नी ने आशंका जताई थी कि उसकी हत्या हो सकती है।
मुन्ना बजरंगी के हत्या केस की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने अपने हाथों में ले ली है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर लखनऊ सीबीआई की स्पेशल क्राइम ब्रांच ने 25 फरवरी 2020 को इस मर्डर केस में मुकदमा दर्ज कर लिया। मुन्ना की पत्नी सीमा सिंह ने सीबीआई जांच की मांग की थी।
यह वैसा ही प्लान के हिसाब से था। सवाल और भी थे जिनके जवाब शायद मिलने चाहिए थे हालाँकि बाद के दिनों में यह ठन्डे बस्ते में दब कर रहने वाली बात हो गई। सवालों में यह भी था कि हथियार अंदर कैसे पहुंचा? साथ ही हाई सिक्योरिटी जेल में न कैमरा न सिक्योरिटी का इंतजाम था? खैर एक बड़े डॉन के बेदर्द अंत की यह दास्ताँ समाप्त हो गई। विकास दुबे के हालिया एनकाउंटर के बाद मुन्ना बजरंगी की जेल में हत्या की खबर भी अचानक चर्चा में आ गई। देखना है जांच का अंजाम क्या निकलता है?