मनीष कश्यप अकेले गलत नहीं, सरकार और सिस्टम भी बराबर दोषी

पत्रकारिता के नाम पर देश में यू ट्यूब पत्रकारों की एक बाढ़ सी आई हुई है। पत्रकारिता के आईडी कार्ड को महज पावर सिंबल समझने वालों को यू ट्यूब की कमाई और कोरोना महामारी की बेरोजगारी ने ऐसी हवा दी कि आज पत्रकारिता के पेशे पर सवालों की झड़ी लग गई। गली गली मीडिया के नाम पर धन शोधन यंत्र लग गए और एक माइक और आईडी यूट्यूब लिंक के नाम पर वसूली के लीगल तरीके बन गए। इनमे से कुछ छप गए कुछ छिप गए लेकिन पत्रकारिता के नाम पर इस खतरनाक शुरुआत का अंजाम आज न कल सामने आना ही था। सोशल मीडिया पर पत्रकारिता क्रमशः बॉलीवुड या पॉलिटिक्स की सुपर डुपर हिट या चुनाव जीतने के लिए घोषणा जैसे शब्दों सी है।

 

इन दिनों बिहार के एक यूट्यूबर पत्रकार मनीष कश्यप मेन स्ट्रीम मीडिया की सुर्खियों में हैं। सिर्फ मीडिया ही नहीं सोशल मीडिया पर भी मनीष के चर्चे खूब हैं। वजह कोई बहुत बड़ा नोट फॉर वोट जैसा स्टिंग या समाज में सरकारी भ्रष्टाचार के मामले उजागर करने जैसा नहीं है। मामला फेक वीडियो शेयर करने का है। यह जाने अंजाने या टीआरपी या व्यूज बटोरने का तरीका हो सकता है। हालांकि यह मामला इसलिए संगीन बना क्योंकि ‘बिहार के मजदूरों की तमिलनाडु में स्थिति ठीक नहीं’ मुद्दा यह था।

 

अब बात इसी मुद्दे पर करते हैं घर छोड़ने वाले किस व्यक्ति की स्थिति बाहर सही है सरकारें यही बता दें? जिन अखबारों, मेन स्ट्रीम मीडिया के चैनलों ,पक्ष विपक्ष के नेताओं, पत्रकारों और आम लोगों ने इस तरह के वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर देख कर शेयर किया क्या आप उन्हें भी जेल भेजेंगे? पहले की बात तो क्या ही करें बिहार सरकार यही बता दे कि पिछले एक दशक में बिहार सरकार ने राज्य से बाहर जाने वाली ट्रेनों में जानवरों की तरह पलायन कर रहे बिहारी लोगों के लिए क्या नीति बनाई? कौन सी योजना पलायन रोकने, मजदूरों को बाहर जाने से रोकने के लिए बनाई गई? बिहार के पढ़े लिखे ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट युवाओं को नौकरी देने के लिए कौन सा विशेष नियोजन अभियान चलाया यह बताएंगे? नहीं, शायद इसका जवाब यही है।

 

अगर सरकार रोजगार नहीं दे सकती, नीति और नियत की बात नहीं कर सकती तो शायद ऐसी किसी भी सरकार को एक पत्रकार जो अपने पेशे से ईमानदार रहा और सैकड़ों लाइव और ग्राउंड रिपोर्ट के माध्यम से आपकी कमी को उजागर करता रहा उस पर सवाल उठाने और उसे एक यूटुबर बताने का अधिकार तो कम से कम आपको नही है। वह भी तब जब सैकड़ों करोड़ का घोटाला करने वाला परिवार आज गठबंधन के माध्यम से सत्ता में है। वह भी तब जब डिप्टी सीएम सवालों के घेरे में हैं। वह भी तब जब राज्य के सीएम पर बार बार पलटी मारने का आरोप लगता है और वह भी तब जब आप खुद के फैसले को जस्टिफाई नहीं कर पा रहे। कम से कम चार पांच बड़े मामले ऐसे हैं जब सीएम यह कह पल्ला झाड़ते नजर आए कि ‘हमें पता ही नहीं।’

 

मनीष कश्यप सत्ता और सिस्टम के निशाने पर आने वाले यूँ तो पहले नहीं हैं लेकिन जिस तरह से सरकार ने मनीष को निशाना बनाया उससे अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी की यादें ताजा हो गईं। मनीष ने अपनी सफाई में अख़बारों की कतरन और विडियो/न्यूज़ क्लिप्स भी दिखाए जिनके आधार पर रिपोर्ट दिखाई या साझा की गई ऐसे में क्या पत्रकारों को सफाई देने या गलती सुधारने का मौका नहीं मिलना चाहिए? वह भी तब जब बिहार  सरकार खुद सफाई देने के लिए जानी जाती रही है। जिस सरकार के खुद के मंत्री सरकार पर सवाल उठायें और विवादित बयान के लिए जाने जाते हों, उस सरकार से उम्मीद मंत्रियों पर कारवाई की थी लेकिन लपेटे में एक पत्रकार को लिया गया। कहीं न कहीं मैसेज स्पष्ट है सत्ता को चुनौती देने वालों के लिए पुलिस का उपयोग होता रहेगा।

 

डिजिटल और सोशल मीडिया के इस दौर में वीडियो और पोस्ट जल्दीबाजी में पोस्ट हो सकती है। जिनके लाखों करोड़ों फॉलोअर्स हैं उन्हें जिम्मेदारी से लिखना चाहिए जितना बड़ा सच और फैक्ट यह है उतना ही बड़ा फैक्ट यह भी है कि सरकार को किसी खबर का खण्डन या सफाई भी उसी जल्दबाजी में देना चाहिए। न की किसी एक को बलि का बकरा बना देना चाहिए। मनीष कश्यप ने पत्रकारिता की मर्यादा का उल्लंघन जरूर किया लेकिन वह अकेला नहीं है। सरकार और उसकी संस्थाएं कहां थी? क्या आज भी सोशल मीडिया को बिहार के दलों ने राजनीति करने का माध्यम ही समझा है? ससमय सफाई क्यों नही दी?

 

मनीष के खाते में 42 लाख रुपये मिले क्या यह ऐसा आधार है जिसपे इतनी सख्ती बरती जाए? ख़बरों के मुताबिक खान सर और किसी आईएएस  अकादमी ने उन्हें पैसे दिए और मनीष के कहने पर होर्डिंग लगाये? क्या यह अपराध है? क्या सत्ता में बैठी सरकारों को इन्फ़्लुएन्सर मार्केटिंग के बारे में जानकारी नहीं है? आज देश के हजारों ऐसे युवा हैं जिनके सोशल मीडिया पर लाखों फॉलोवर्स  हैं और वह हजारों प्रोडक्ट्स और ऐसे कोचिंग संस्थानों को एंडोर्स करते हैं अगर यह अपराध है तो यकीं मानिये बिहार में बहुत बड़े बदलाव की जरुरत है।

 

मनीष से ज्यादा सवाल सरकार पर भी होंगे। यह दौर खतरनाक है। आज मनीष सिस्टम से लड़ रहा लेकिन भगवान न करे अगर ऐसी ही अकर्मण्यता रही तो सिस्टम भी इसकी चपेट में आ सकता है। अग्निवीर योजना के दौरान जिस तरह झूठी ख़बरों, विडियो और पोस्ट के दम पर बिहार में बवाल हुआ वह सब हमने देखा है। ऐसे में सरकार को अपने सिस्टम को न सिर्फ सुदृढ़ करने की बल्कि समय के साथ अपडेट करने की भी जरुरत है।   खास कर उस राज्य में जहां शराब बंदी के बावजूद शराब हर गली हर वार्ड में होम डिलीवरी हो रही(बिहार में यह बातें आम है), लाखों जेल में बंद हैं और हजारों जहरीली शराब से जान गंवा चुके हैं। ऐसे में सिस्टम भी दूध का धुला तो नहीं है। इसलिए जरूरी है कि ‘मानवीय भूल’ को  सुधारने का अवसर सभी को बराबर मिले, ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति न हो न ही पत्रकारिता जैसे पेशे को बदनाम किया जाए।

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