क्या राज ठाकरे की राह चलना चाहते हैं अल्पेश, नीतीश मौन

देश की राजनीति में जातिवाद और क्षेत्रवाद का जहर घुला है यह तो समझ आता है लेकिन क्या मानवता का भी अंत हो चुका है? यह सवाल आज सभी के मन मष्तिष्क पर घूम रहा है। वहां जहां कि यह घटनाएं हो रही हैं, कम से कम पड़, लिख और देख कर तो ऐसा ही लगता है। क्या इस राजनीति का कोई विकल्प नही है? क्या इसका कोई अंत नही है? क्या इसके बिना राजनीति की लकीरें पार नही की जा सकती हैं? खैर सवाल कई हैं लेकिन तथ्य और सवाल कम से कम एक है जो खास है। वह है क्या उत्तर भारतीय नागरिक ही राजनीति के पुरोधा हैं? क्या उनके बिना राजनीति की रोटियां नही सेंकी जा सकती हैं?

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गुजरात मे जो कुछ हो रहा है वह तो कम से कम इसी तरफ इशारा करता है। अब सवाल है ऐसा वहां क्या हो रहा है कि राजनीति पर इतने प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं? यह गंभीर सवाल क्यों? तो आइए पहले पूरी घटना बता दें। गुजरात मे एक जिला है साबरकांठा, इस जिले में 14 माह की बच्ची से बलात्कार की घटना के बाद गैर-गुजरातियों पर कथित तौर पर हमला करने के मामले सामने आए हैं। इन हमलों का आरोप लगा है गुजरात के विधायक अल्पेश ठाकोर और उनकी ठाकोर सेना पर। इस सेना के हमलों के बाद स्थानीय मकान मालिक जहां बिहार-यूपी के लोगों से मकान खाली करा रहे हैं वहीं डर की वजह से उत्तर भारतीय लोग भी बड़ी संख्या में पलायन को मजबूर हैं। प्रशासन मौन और गौण ही था लेकिन राजनीतिक बवाल के बाद जागे प्रशासन ने अब कार्रवाई की है। इस मामले में 342 स्थानीय लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

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सबसे आश्चर्य की बात यह है कि अब तक बिहारी अस्मिता की दुहाई बात बे बात देने वाले बिहार के सीएम का बयान सामने नही आया है न ही केंद्र या गुजरात सरकार के किसी प्रतिनिधि का कोई बयान सामने आया है। ऐसे में इस क्षेत्रवाद और दलगत राजनीति से हम कब और कैसे निकलेंगे यही सवाल सबसे बड़ा है। साथ ही यह हमले महाराष्ट्र में राज ठाकरे और उनकी पार्टी मनसे की याद दिलाते हैं। यह भी सबको पता है कि इन हमलों की वजह से उन्हें सस्ती लोकप्रियता तात्कालिक तौर पर मिली लेकिन आज राजनीति से लगभग वह मिट से गए हैं। खास बात यह है कि अल्पेश बिहार के कांग्रेस के प्रभारी भी हैं।

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