इस वजह से अटल की अंतिम यात्रा में पदयात्रा कर स्मृति स्थल तक पहुंचे मोदी, पढ़ें

भारत शोक में डूबा है। हर तरफ अटल जी के जाने का गम है। उन्हें अलग-अलग मध्यमों से अलग-अलग तरीकों से याद किया जा रहा है। हर आम और खास के पास उनसे जुड़ा कोई न कोई किस्सा है। कोई उन्हें निजी तौर पर जानने की वजह से याद कर रहा है, कोई उनके प्रधानमंत्री रहते उनके द्वारा किये गए कार्यों के लिए उन्हें याद कर रहा है तो कोई भावनात्मक लगाव की वजह से उन्हें श्रद्धा के पुष्प अर्पित कर रहा है। इन सब के बीच भारत की राजधानी आज एक ऐसे पल की गवाह बनी जो शायद ही आने वाले कुछ सालों में किसी अन्य नेता के लिये फिर से देखने को मिले।

यह पल था अटल जी की अंतिम यात्रा। इस यात्रा में सैकड़ों, हज़ारों या यूं कहें अनगिनत लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। जगह कम पड़ गई। दर्शन की उम्मीद अधूरी रह गई। गर्मी से त्रस्त लोग इसके बावजूद अपने जननेता के आखिरी विदाई में शरीक हुए।

इन पलों के बीच एक और पल खास था। यह पल था बीजेपी मुख्यालय से स्मृति स्थल तक अटल की अनंत यात्रा का। यह पल था देश की राजनीति के शिल्पी, आधार और मजबूत स्तंभ अटल जी को अंतिम प्रणाम सौंपने का, उन्हें विदाई देने का। इस पल में खास यह था कि एक पूर्व प्रधानमंत्री की अंतिम यात्रा में देश का वर्तमान प्रधानमंत्री पैदल शामिल हुए। एक पार्टी के पूर्व अध्यक्ष की अंतिम यात्रा में उस दल का वर्तमान अध्यक्ष पैदल शामिल हुए।

इसके अलावा न जाने कितने बड़े नेता, वीआईपी और मुख्यमंत्री इस दौरान पैदल उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए शामिल हुए। यह सवाल बहुत बड़ा नही है। यह तो सम्मान दर्शाने का महज एक तरीका माना जा सकता है। हालांकि इससे जुड़ा एक किस्सा है। किस्सा यह है कि जब अटल जी लखनऊ के सांसद थे तब वहां के एक स्थानीय नेता की शवयात्रा में वह पैदल शामिल हुए थे। अनुरोध के बावजूद वह गाड़ी में नही बैठे और कहा कि शवयात्रा में गाड़ी से जाना ठीक नही है।
यही वजह है कि पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत कई दिग्गज नेता उनकी अंतिम यात्रा में पैदल ही शामिल हुए।

इसके अलावा हम सभी जानते हैं कि अटल जी बीजेपी के शिल्पकार थे, जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से थे। हर दिल अजीज थे। पीएम मोदी ने उन्हें पिता तुल्य बताया। ऐसे में यह सम्मान देना आवश्यक भी हो जाता है। खैर अटल जी अब हमारी यादों में हैं। उनके विचार इस धरा पर अमर हैं। बेशक उनका नश्वर शरीर साथ छोड़ गया लेकिन अटल जी आने वाली पीढ़ियों और राजनेताओं के साथ भारतीय राजनीति के लिए एक सिद्धहस्त हस्ताक्षर और पुरोधा थे और रहेंगे। उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।

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