डिजिटल इंडिया में फेक न्यूज़ की चिंता, रोके न रुक रहा यह दौर, पढ़ें कुछ उपाय

2014 लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने यूँ तो कई योजनाओं की घोषणा की थी, कई के नाम बदल उन्हें नए कलेवर में पेश किया था लेकिन इनमें एक योजना खास थी। वह योजना थी डिजिटल इंडिया। इस योजना की सफलता को लेकर कोई संशय या शंका नही है।

आज भारत न सिर्फ मोबाइल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है बल्कि उपयोगकर्ता भी है। इस योजना के लिए जियो सोने पर सुहागा रहा। और महंगे नेट से जूझती जनता को जैसे मन मांगी मुराद मिल गई। इसके साथ ही हाथ मे मौजूद मोबाइल में फ्री का डेटा मिलने लगा और मन इसकी अनंत गहराइयों में गोते लगाने लगा।

लोग मोबाइल छेड़ते-छेड़ते बहुत कुछ सीख गए। आज भी सीख रहे हैं और आगे भी सीखेंगे। अब तो यह एक लत बन चुकी है। आज हम बैंक से लेकर बिल भरने और समाचार पढ़ने से लेकर समाज मे जुड़ने, रिचार्ज कराने से लेकर कॉलेज ढूंढने, अपनी बात रखने तक के लिए इसी का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि हम इस दौरान कुछ ऐसा भी करते हैं जिसके परिणाम का अंदाजा भी शायद हमें नही होता। इसमे बारी सबसे पहले ऐसी खबरों की आती है जिनका कोई मजबूत आधार नही है, सोर्स नही है। इसके बावजूद हम इन्हें बगैर सोचे समझे शेयर करते हैं। अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। इसका परिणाम गंभीर हो जाता है।

अब बात करते हैं कैसे? इससे पहले बताते हैं फेक न्यूज़ टर्म कहाँ से आया और कैसे प्रचलित हुआ। दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस टर्म का इस्तेमाल अपने चुनावी अभियान के दौरान सीएनएन को निशाने पर रखते हुए खूब हुआ। इसका अंजाम यह हुआ कि यह शब्द साल का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला शब्द बन गया।

अब यह शब्द भारत मे चर्चित है। चर्चा इस बात को लेकर है कि इसे कैसे रोका जाए। इसका एक मात्र विकल्प है कि हम जागरूक बनें, खबरों के आधिकारिक सोर्स को जांचें परखें और अपने अनुभव के साथ अपनी जिम्मेदारी समझते हुए ही इसे आगे शेयर करें। भ्रम और झूठ से बचें। शायद यही एक तरीका है जिससे हम डिजिटल युग मे झूठ परोसने,पढ़ने और भ्रमित होने से बच सकते हैं।

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