छत्तीसगढ़ सरकार 2009 से यह दम्भ भरती रही है कि राज्य के किसान खुशहाल हैं और आत्महत्या की कोई घटना कर्ज या फसल चौपट होने की वजह से नही हुई है। हालांकि यह महज जबरदस्ती के आंकड़े हैं और सच्चाई इससे काफी अलग है। सरकार दावे करती रही कि हम हर फसल का उचित मूल्य किसानों को दे रहे हैं, योजनाएं धरातल पर सही तरीके से उतर रही हैं और इसका फायदा किसानों को मिल रहा है, इसके बावजूद अगर किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो यह उनकी घरेलू या परिवारिक-सामाजिक समस्या हो सकती है। लेकिन सरकार अपने ही बनाये जाल में तब उलझ गई जब सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में उठाने मान लिया की किसान आत्महत्या के आंकड़े प्रतिवर्ष एक हजार से ज्यादा हैं।
जिसजे अलावा साल 2016 में हुए टमाटर आंदोलन ने भी किसानों के लिए किए जाने वाले सरकारी दावों की बखिया उधेड़ दी। इस आंदोलन में किसानों ने न सिर्फ सरकार के खिलाफ जम कर विरोध प्रदर्शन किए बल्कि टमाटर की पूरी फसल सड़कों पर फेंक दी। उनका आरोप था कि उन्हें अपनी किसी भी फसल का सही दाम नही मिल रहा है। हालात ऐसे बने थे कि टमाटर की कीमत 50 पैसे प्रति किलो पर आ गई थी। ऐसे में सब्र का बांध टूट गया और चुपचाप आत्महत्या को अपनी नियति मां लेने वाले किसानों ने सरकार को जवाब देने का यह तरीका अपना लिया। इसका नतीजा क्या हुआ यह आज तक साफ नही है लेकिन विरोध के बीच बदलाव और जागरूकता की एक बयार जरूर बाह उठी।