मुम्बई में बना बांद्रा-वर्ली सी लिंक के बारे में आपने सुना होगा। इसकी बात आते ही शायद आपके मन मे समुद्र के नजारे, कार की रफ्तार और इस पुल की खूबसूरती सामने आए। लेकिन इसके अलावा भी एक चीज है जिससे शायद आप अनजान हैं। और हां यह सच्चाई सिर्फ मुम्बई के इसी पुल की नही है। यह सच्चाई है देश के तमाम उन बड़े बड़े पुल-पुलियों की जो बड़ी बड़ी नदियों पर बनाये गए हैं। यूँ तो इनका मकसद जिंदगी को आसान बनाना है लेकिन यही पुल अब जिंदगी खत्म करने के लिए उपयोग में लाये जा रहे हैं।
बीते कुछ सालों में जितनी तेजी से आत्महत्या की प्रवृति बढ़ी है उसी तेजी से इसके लिए पुल का उपयोग भी बढ़ा है। बात चाहे मुम्बई के सी लिंक की हो या बिहार के महात्मा गांधी सेतु की, भागलपुर स्थित विक्रमशिला सेतु की, बक्सर स्थित गंगा नदी पर बने सेतु की या चाहे दिल्ली स्थित यमुना पर बने ब्रिज की, हमारे सामने रोज ऐसी खबरें आती हैं जब कहीं न कहीं किसी न किसी ने किसी पुल से छलांग लगाकर जान दे दी हो या कोशिश की हो। कई बार लोगों की तत्परता से जानें बचा भी ली जाती हैं लेकिन अधिकतर केस में ऐसा नही हो पाता। ऐसे में हमें इन चीजों पर काबू पाने और पुल-पुलियों को सुसाइड जोन में तब्दील होने से बचाने की जरूरत है। आत्महत्या समाधान नही है, ज़िंदगी और वक़्त ही हर मर्ज की दवा है।