समय बड़ा बलवान।

जी हाँ, यह समय का ही खेल है की जिस शहाबुद्दीन को नितीश कुमार ने 11 साल पूर्व सलाखों के पीछे भेज सुशाशन का तमगा लिया था, आज उसी शहाबुद्दीन को जमानत मिलते ही उन्हें जंगलराज का हिमायती बताया जाने लगा है।बात में दम भी है,बीजेपी के साथ गठबंधन रहते उन्हें जेल जाना पड़ा था और उनके नेता लालू यादव की सत्ता में वापसी के साथ ही उन्हें जमानत मिलना कहीं न कहीं इस बात की पुष्टि भी करता है।याद रहे शहाबुद्दीन ने खुद जमानत मिलते ही लालू यादव को अपना नेता बताया था और साथ ही साथ नितीश कुमार को परिस्थितिवश सीएम भी कहा था।

सिवान के बाहुबली ,राजद के पूर्व सांसद,और बिहार की राजनीती के साहब के अलावा भी शहाबुद्दीन को कई नामों से जाना जाता है इन सब के अलावा उन्हें उनके कामों से कम और अपराध की दुनिया में बेताज बादशाहत के लिए जाना और पहचाना जाता है।लालू यादव के शासन में शहाबुद्दीन खौफ का दूसरा नाम हुआ करते थे,दहशत ऐसी की लोग नाम के बदले साहब बुलाते थे।यह हम नहीं कह रहे उनपे दर्ज अपराधिक मामलों के आंकड़े कहते हैं।56 से ज्यादा मामलों में शहाबुद्दीन नामजद अभियुक्त हैं और कई में सजा के साथ जमानत भी पा चुके हैं।शहाबुद्दीन के कुछ बेहद संगीन मामले भी हैं जिनमे भाकपा माले कार्यकर्ता की अपहरण और हत्या,जेनएयू के छात्र संघ अध्यक्ष की हत्या,और चर्चित के साथ दिल दहलाने वाला तेज़ाब काण्ड जिसमे हाल ही में इसी मामले में उन्हें जमानत भी मिली जिसकी वजह से बिहार की राजनीती में मचा भूचाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।बीजेपी हमलवार रुख में है,लालू खामोश हैं,नितीश करवाई की बात कह हाई लेवल मीटिंग कर चुके हैं लेकिन इस वजह से महागठबंधन सरकार में दरार बढ़ती दिख रही है वहीँ दूसरी ओर सिवान के जिलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में शाहबुद्दीन के वापस आने के बाद लोगों में दहशत और कानून व्यवस्था के बिगड़ने की बात भी कह दी है।

इन सब परिस्थितियों को देखते हुए शाहबुद्दीन पर क्राइम कण्ट्रोल एक्ट (सीसीए)लगना लगभग तय लग रहा है,लेकिन राजनीती की मजबूरियों और सत्ता बचाने का भी प्रयास अहम् साबित हो रहा है।नितीश कुमार हालाँकि करवाई के मूड में लग रहे हैं।

सभी परिस्थितियों को देखने,सोचने और समझने के बाद एक स्थिति स्पष्ट होती नज़र आ रही है कि मीडिया हो चाहे सरकार या आमलोग सभी की नजरें बस शहाबुद्दीन की जमानत पर है बाकी किसी को भी चंदा बाबू की याद नहीं आई न किसी ने उन्हें मदद की सोची जो अपने तीन बेटों को खोने के बाद न्याय की लड़ाई लड़ते आस खो चुके हैं।जी ये वही चंदा बाबु हैं जो तेज़ाब काण्ड के बदकिस्मत पिता हैं और शहाबुद्दीन के सिवान आने के बाद दहशत और घुट घुट कर जीने को मजबूर हैं।वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और सांसद पप्पू यादव ने इनकी मदद को हाथ बढ़ाया है लेकिन बाकी भविष्य के आगोश में हैं।

चंदा बाबू जैसे कई लोग शहाबुद्दीन की क्रूरता और अपराध से त्रस्त हैं लेकिन आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं ,राजनीती की मज़बूरी,सत्ता की लालसा और कानून की अंधी दृष्टि शायद ही इन्हें न्याय दिलाये।कुल मिलाकर जो यथार्थ है वह यही है समय बड़ा बलवान।

विजय राय

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