कोरोना वायरस के संक्रमण से दुनिया के सैकड़ों देश प्रभावित हैं। कई देशों में इस महामारी ने ऐसा प्रकोप दिखाया कि लाखों लोग काल के गाल में समा गए। भारत मे भी इसका कहर लगातार जारी है। हर दिन इसके संक्रमण के आंकड़े इसकी बढ़ती भयावहता को दिखाने के लिए काफी हैं। इसके बीच इससे बचने के लिए कभी वैक्सीन की बात सामने आती है तो कभी हर्ड इम्युनिटी की लेकिन भारत मे ही हुए एक रिसर्च में यह साफ हो गया है कि हर्ड इम्युनिटी की बात गलत है और हमें कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन पर ही आश्रित रहना पड़ सकता है।
यह रिसर्च मुंबई के JJ ग्रुप्स ऑफ हॉस्पीटल ने ‘आईबीट्स फाउंडेशन’ नामक एक गैर-लाभकारी संस्था के साथ मिलकर जून में की थी। इसके नतीजे हैरान करने वाले हैं। नतीजों के मुताबिक इसमें JJ अस्पताल, GT अस्पताल और सेंट जॉर्ज अस्पताल के 801 स्वास्थ्यकर्मियों का एंटीबॉडी टेस्ट किया गया। इस रिसर्च के सामने आने के बाद यह स्पष्ट है कि 50 दिन के बाद कोरोना से एक बार ठीक होने के बाद भी दुबारा संक्रमण का खतरा बना रहता है।
इनमें से लगभग 10 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मियों के खून में एंटीबॉडीज पाई गईं, लेकिन जो 28 स्वास्थ्यकर्मी सात हफ्ते पहले (अप्रैल अंत से मई की शुरूआत के बीच) कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे, उनमें से किसी में एंटीबॉडीज नहीं पाई गईं।स्टडी में 34 ऐसे स्वास्थ्यकर्मी भी शामिल थे जो तीन और पांच हफ्ते पहले कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए थे। नतीजों के अनुसार, जिन स्वास्थ्यकर्मियों को तीन हफ्ते संक्रमित पाया गया था, उनमें से 90 प्रतिशत में एंटीबॉडीज थीं। वहीं जिन्हें पांच हफ्ते पहले संक्रमित पाया गया था, उनमें से 38.5 प्रतिशत के खून में एंटीबॉडीज पाई गईं।
इस रिसर्च के साथ एक नई और बुरी खबर हांगकांग में पहले ऐसे केस की भी आई जिससे यह पुष्टि ही कि कोरोना का संक्रमण दुबारा कभी भी लौट सकता है। इसके बाद वैक्सीन के कारगर होने को लेकर भी सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। दुनिया के अलग अलग शोध में भी यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि हर्ड इम्युनिटी की बात बेमानी है और फिलहाल वैक्सीन का ही सहारा है।