बिहार विधानसभा को लेकर तैयारियां उफान पर हैं। दलों और नेताओं के पाला बदलने का दौर अनवरत जारी है। जीत हासिल करने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष किसी भी तरह का कोई कोर कसर नही छोड़ना चाहते हैं। यही वजह है कि रूठे यारों को मनाने से भी कहीं कोई परहेज करता नही दिख रहा है।
हालांकि इन खबरों के बीच एक खबर ऐसी है जो सत्ता और विपक्ष दोनो के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। यह खबर है बिहार चुनाव में छोटे दलों की एंट्री। छोटे दलों में नाम लेकर बात करें तो आम आदमी पार्टी, जान अधिकार पार्टी सहित कई ऐसे दल हैं जो बेशक जीतने की स्थिति में नही लेकिन खेल खराब करने की स्थिति में जरूर हैं।
इन दलों में एक दल असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाला ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) है। इस दल ने मुस्लिम बहुल 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर सत्ता-विपक्ष की टेंशन बढ़ा दी है। यह ऐसी सीटें हैं जहाँ कम से कम 25 फीसदी और ज्यादा से ज्यादा 69 फीसदी तक मुस्लिम आबादी है।
एआइएमआइएम के इस एलान से विपक्षी दल राजद के माथे पर चिंता की लकीरें जहां ज्यादा गहरी हैं वहीं जदयू-बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए ने राहत की सांस ली हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि मुस्लिम मतदाता राजद के कोर वोट बैंक माना जाता है और ओवैसी की एंट्री से मत विभाजन का फायदा अप्रत्यक्ष तौर पर सत्ताधारी दल को होगा।
जद की अगुवाई वाली महागठबंधन की चिंता की दूसरी वजह यह है कि इन 50 सीटों में से 30 पर अभी राजद और 11 ओर कांग्रेस का कब्जा है वहीं 9 सीटें बीजेपी-जदयू बहुल हैं। ऐसे में साफ है कि नुकसान ज्यादा राजद के होगा। खैर समीकरणों के आकलन के इस दौर में असली नतीजों के आने के बाद ही नफा-नुकसान का असली आकलन हो सकेगा।