गुरुवार को जन विश्वास बिल लोकसभा में पारित हो गया लेकिन राजसभा में इसकी परीक्षा अभी बाकी है। इस बिल के माध्यम से सरकार 19 मंत्रालय से जुड़े 42 कानूनों के 182 प्रावधानों को सजा से मुक्ति देने जा रही है।
जिन अपराध को कानून के दायरे से निकाला जा रहा है उनमें ड्रग एवं कॉस्मेटिक एक्ट, फार्मेसी एक्ट, फूड सेफ्टी एक्ट और प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट जैसे अहम प्रावधान है।
वहीं इस बिल पर विशेषज्ञों का कहना है कि दवाओं की क्वालिटी जैसे अहम मामले में जेल खत्म करने से अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे जो देश के लिए घातक हो सकता है क्योंकि छोटे मामलों की आड़ में बड़े मामलों को अपराध से मुक्त करना ठीक नहीं है।
वहीं पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव ने कहा कि ड्रग्स और फार्मेसी के मामले में भारत में क्वालिटी कंट्रोल और नियमों के उल्लंघन के मामले से निपटने की लचर व्यवस्था को देखते हुए आपराधिक सजा बरकरार रखा जाना चाहिए क्योंकि देश में 7000 से अधिक जेनेरिक दवाएं बन रही है और इसमें अपराधिक कृतियों की गुंजाइश है।
उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि सिंगापुर में नशीले ड्रग के खिलाफ मौत की सजा तक का प्रावधान है जो सिंगापुर सरकार की ड्रग के खिलाफ प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
दवाओं की क्वालिटी के मामले में कोई भी लापरवाही मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है इसलिए इस सेक्टर को कानून के खौफ के दायरे में रखना अत्यंत जरूरी है।
इस बिल के अनुसार एक तरफ कुछ मामलों में जेल की सजा के प्रावधान को खत्म करना स्वागत योग्य है वहीं दूसरी ओर कुछ को कारावास के खौफ से अलग करना गलत साबित हो सकता है।
एक स्टडी के अनुसार वर्तमान समय में 1,536 कानूनों के तहत 70 हजार नियम हैं लेकिन यह बिल 42 कानून तक ही सीमित है।
बिल पेश करते समय पीयूष गोयल ने कहा कि कुछ ऐसे छोटे अपराध हैं जिसमें किसी को जेल भेजना इंसाफ नहीं है।