एक कहावत है कि जब जहाज डूबने लगता है तो सबसे पहले चूहे जहाज को छोड़ते हैं। यह कहानी राजनीति में शत प्रतिशत सही साबित होती है। यह कहानी न सिर्फ उदय और अस्त होने की है बल्कि यह कहानी दोस्ती और दुश्मनी भुलाकर राजनीतिक लाभ-हानि के लिए पाले बदलने पर भी लागू होती है। अब यहां हम यह बातें क्यों कर रहे हैं यह बताना जरूरी है। तो यह बात इसलिए है क्योंकि आज कांग्रेस जिस कदर चुनाव दर चुनाव हारती गई और बीजेपी का बोलबाला बढ़ता गया ऐसे में कांग्रेस डूबती नाव बन गई। हर राज्य में उसके बड़े छोटे नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उसका साथ छोड़ा और बीजेपी जो उगता हुआ सूर्य थी और आज भी है उसका दामन थाम लिया। हालांकि इस अदला-बदली के क्रम में बीजेपी के ही कुछ खास चेहरे अचानक गौण हो गए।
इस खबर में हम ऐसे ही दो नेताओं का जिक्र करेंगे। इन दो नेताओं में एक नेता जहां बीजेपी का मुस्लिम चेहरा और अटल सरकार में मंत्री रह चुका है। वहीं दूसरे चेहरे की पहचान उसकी फायरब्रांड हिन्दूवादी छवि है। यह दोनों नेता कभी सुर्खियों में होते थे लेकिन आज तटस्थ हैं। इन नेताओं के नाम में और अनुभव के साथ इनके राजनीतिक वर्चस्व को लेकर शायद ही कोई शक हो लेकिन कहते हैं राजनीति में चेहरे नही जीत और मुद्दे मायने रखते हैं। यह दो चेहरे हैं बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहनवाज हुसैन और सांसद वरुण गांधी।
आपको बता दें कि शहनवाज़ हुसैन बीजेपी के टिकट पर बिहार के भागलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे। वह राजद के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल से हार गए। इज़के बाद उम्मीद थी कि अटल के कार्यकाल में मंत्री रहे इस मुस्लिम चेहरे को बीजेपी शायद राज्यसभा से सांसद बना एंट्री देगी लेकिन ऐसा नही हुआ। उनको लेकर पार्टी का क्या रवैया 2019 में रहता है यह भी देखने वाली बात होगी। अब बात वरुण गांधी की करें तो उनकी माँ मेनका गांधी केंद्र में मंत्री हैं। वह कई बार अपनी ही पार्टी और सरकार पर सवाल खड़े कर चुके हैं। पिछले कुछ दिनों से वह शांत हैं लेकिन इस बीच उन्हें लेकर अफवाहों का बाज़ार गर्म रहा। कभी पार्टी से मनमुटाव की खबरें आईं तो कभी वह कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं यह बात भी उछली। हालांकि ऐसा उनकी तरफ से कभी कुछ नही कहा गया। वरुण गांधी अपनी फायरब्रांड हिंदूवादी छवि के लिए जाने जाते थे लेकिन अब ऐसा लगता है उनकी धार उनकी ही पार्टी में कुंद हो गई है। ऐसे में सवाल है कि दो अलग अलग वर्गों के बीच लोकप्रिय चेहरों को बीजेपी क्या दल बदल कर आये नेताओं के चक्कर मे भूल गई है?