भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में रट्टू तोते की तरह हिंदी बताई जाती है। भारत मे एक बड़ी आबादी हिंदी का प्रयोग बोलचाल के लिए भी करती है। यूनाइटेड नेशन्स तक मे इसका डंका बज चुका है। अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी तक हिंदी को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन इन सब के बीच एक दुख यह है कि क्या हिंदी को वह गौरव मिला जिसकी यह हकदार थी? या क्या हिंदी ने उनके लिए वह किया जो इसके पैरोकार थे? जैसे हिंदी के कवि लेखक या हिंदी मीडियम को अपनी ताकत मानने वाले बेटे बेटियां? एक हालिया विवाद की वजह से यह सवाल आम हो जाते हैं।
हाल ही में आयुष मंत्रालय के एक अधिकारी पर आरोप लगा कि उन्होंने कहा दिया था कि जिन्हें हिंदी समझ नही आती वह बैठक छोड़ जाएं। हालांकि बाद में सफाई में उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नही हुआ। वहीं तमिलनाडु में इस मामले को खासा तूल दिया गया और कई बड़े राजनेता इस विवाद में कूद गए। अब हिंदी राष्ट्रभाषा है और द्विभाषिए की सुविधा है तो विवाद वद क्यों? अभी कुछ दिनों पहले फेसबुक पर एक पोस्ट भी पढ़ी थी जिसमे हिंदी जानने वालों की पीड़ा थी और अंग्रेजी में हाथ तंग होने का गम था। जिसका जवाब लिखना मुझे उचित लगा।
मैंने लिखा- इस पोस्ट में हिंदी से दूर होने का एहसास था। इंग्लिश को जबरदस्ती थोपने का दुख था। मातृभाषा हिंदी है लेकिन यकीन मानिए शुद्ध हिंदी आज न समझ मे आती है, न पढने के काम आती है, न रोजगार न आजीविका के काम आती है। आज जब यह पोस्ट पढ़ा तो कुछ इन बातों और हिंदी इंग्लिश से जुड़ी यादें बरबस ताजा हो गईं।
पहला किस्सा- तुम लिखते तो बहुत अच्छा हो लेकिन शब्द और भाषा समझ नही आती। दूसरा किस्सा- इंग्लिश में यही होता तो जबरदस्त होता। तीसरा किस्सा- हिंदी में दुनिया भर की फर्जी,मनमर्जी की खबरें चलती है कौन पड़ता है इसके चक्कर मे?
अब इन बातों का जवाब देता हूँ। थोड़ा कठिन है और भाषा थोड़ी अमर्यादित लग सकती है लेकिन शायद यह जरूरी है। पहले सवाल का जवाब यह है कि मैं शौक से लिखता हूँ हर लेख पैसे या शोहरत के लिए नही होता,कितने लाइक शेयर और कमेंट आए इससे कोई फर्क मुझे नही पड़ता। दूसरे सवाल का जवाब जितनी बेहतर हिंदी मैं लिख सकता हूँ शायद उतनी बेहतर समझने के लिए तुम्हारी हिंदी नही है और इंग्लिश ढूंढ रहे हो। तीसरे सवाल का जवाब बेशक फर्जी खबरें हैं लेकिन यह आपकी सोच,समझ और सूचिता पर है कि आप किस पर कितना भरोसा करते हैं।
अंग्रेजी अमेरिका की सर्वमान्य भाषा है लेकिन वहां की मीडिया पर वहां का राष्ट्रपति खुद फेक न्यूज़ का ठप्पा लगा चुके हैं। इसके अलावा हिंदी न दोयम दर्जे की थी न होगी, बस इसे आगे ले जाने वाले चाहिए। कल और भी आएंगे हमसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले, कोई मलाल नही हमें कोई पढ़े न पढ़े, इग्नोर करे, इससे न आजीविका पर फर्क पड़ना है न सेहत पर।
आप सोच के देखिए आज तमिलनाडु के लोग हिंदी के बोर्ड पर कालिख लपेट रहे हैं,बंगाल के हावड़ा या सियालदह में आप बंगालियों से, भुवनेश्वर या कटक में ओड़िया बोलने वालों से, बैंगलोर में या दक्षिण और उत्तर पूर्व के किसी राज्य में आप हिंदी में जवाब नही ले सकते यही लोग जब बिहार होती गुजरती ट्रेन में बैठते हैं तो तोते की तरह हिंदी बोलते हैं।
दिल्ली मे रोजगार के लिए सीखते हैं। इसलिए हिंदी की अहमियत को कम मत आंकिये देखना है तो फेसबुक और ट्विटर की पालिसी देखिए। हिंदी के लिए करोड़ों का पैकेज देखिए। अपनी क्षमता देखिए। हिंदी को आगे हम आप ले जाएंगे, नाराज और उदास मत हो अंग्रेजी न आये तो न सही हिंदी में कोई हमें पकड़ नही सकता और एक दिन यह सभी स्वीकार करेंगे। हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।