आज का समय ऐसा है कि जिसे नौकरी न मिले वह भी परेशान है और जिसे मिल गई है वह भी परेशान है। जो बेरोजगार हैं उन्हें घर, परिवार, समाज और सरकार हर जगह से सुनना पड़ता है लेकिन जिन्हें मिल गई है उन्हें भी सुनना होता बल्कि ऐसा कहें कि कहीं ज्यादा सुनना होता है। ऑफिस में बॉस, सीनियर, साथी इन्हें अलग से सुनाते हैं कभी काम की वजह से तो कभी सैलरी की वजह से मजाक बनाते हैं।
यही वजह है कि आज बेरोजगार और रोजगार युक्त दोनों ही तरह के लोग आत्महत्या कर रहे हैं हालांकि इनमे आंकड़ों की मानें तो नौकरी करने वालों की संख्या ज्यादा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आज की नौकरी में प्रतिस्पर्धा है, हर क्षण आगे बढ़ने की होड़ है, मेहनत जी तोड़ है और इसके बावजूद प्रगति के नाम पर लगभग शून्यता है। मानसिक और शारीरिक थकान से त्रस्त युवा आज न अपनी जरूरत पूरी कर पा रहे हैं न अपनों की, ऐसे में वह तेजी से अवसाद के शिकार हो रहे हैं और अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। सरकार के साथ हम सभी को यह सोचने की जरूरत है कि इन मामलों को कैसे रोकें, कैसे संतुलन बनाएं।