क्या कोरोना,GDP और बेरोजगारी से बड़ा है सुशांत और चीन का मुद्दा? कैसे और क्यों सेट कर रही मीडिया ऐसा एजेंडा?

कोरोना महामारी के दौर में अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है। जीडीपी रसातल में पहुंच चुकी है और बढ़ी हुई महंगाई और बेरोजगारी ने सभी के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी है। इस बीच मेन स्ट्रीम मीडिया में यह मुद्दे गायब होने इससे भी बड़ी चिंता की वजह है। मीडिया के बॉयकॉट तक की बात अब सोशल मीडिया पर उठने लगी है। उठे भी क्यों न कोरोना के इस दौर में जहां सबसे अहम और बड़ा मुद्दा रोजगार बचाना और बढ़ाना होना चाहिए वहां हम एक केस के पीछे ज्यादा पड़े हैं।


इसमें कोई शक या संदेह नही की न्याय मिलना चाहिए लेकिन जिस केस की जांच सीबीआई, ईडी, नारकोटिक्स विभाग कर रहे हैं और जांच में सच सामने आ ही जाना है वहां जरूरत से ज्यादा मीडिया की दिलचस्पी होगी तो सवाल तो उठेंगे। यह सवाल उठने तब और लाजमी हो जाते हैं जब आरोपी नंबर एक को तथाकथित चैनल नंबर एक बुला कर घंटे भर का इंटरव्यू लेता है। यह सवाल तब अहम हो जाते हैं जब अदने से अदने चैनल भी हर दिन एक नया दांव और दावा दिखाने लग जाते हैं।


आंकड़ों की बात न करते ह मोटे तौर पर ही बात करें तो करोड़ो लोगों का रोजगार छिन चुका है। लाखों लोगों के सामने आजीविका का संकट मुंह बाए खड़ा है। हर व्यवसाय महीनों के लॉकडाउन की वजह से बुरी तरह प्रभावित है। आने वाले समय मे यह कैसे सही हो और सुधार दिखे इसकी कोई कार्ययोजना तक सरकार पेश नही कर सकी है ऐसे में एक केस को दिन रात मुद्दा बनाने पर सवाल तो उठेंगे।


अब दूसरी बात पर आते हैं। कह भर देने से अगर हम या आप आत्मनिर्भर बन जाते तो न सरकार की जरूरत थी न रोजगार की और न बहुत सी ऐसी चीजों की। सिर्फ कह भर देने से पेट भर जाता तो हर कोई ‘आत्मनिर्भर’ होता। चीनी एप्प आज तक सुरक्षित थे, लाखों का मुनाफा ले रहे थे, लाखों को रोजगार दे रहे थे।

एक सीमा विवाद सामने आते ही चीन के एप्प राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गए? यह रातोंरात कैसे पता लगा? अगर जानकारी थी तो आझ करते हुए बैन करने के साथ उनके अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई क्यों नही की गई? और चीन ही क्यों ट्विटर और फेसबुक जैसे अमेरिकी एप्प सुरक्षित हैं यह कैसे मान लें वह भी तब जब पीएम का निजी एकाउंट खुद हैक हो जाता है?


मीडिया की थोड़ी बहुत इज्जत थी। लोगों में कहीं न कहीं एक आशा थी कि शायद लोकतंत्र का यह स्तंभ तो तन कर खड़ा रहेगा लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों के रिएक्शन, गैर जरूरी मुद्दों को जरूरी बनाना और हर दिन मुख्य एजेंडे को दबाने के लिए एक नया एजेंडा तैयार करने की कोशिशों ने इसकी साख पर ऐसा बट्टा लगाया जो शायद हो आने वाले दिनों में वापस लौट सके।

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