इसरो प्रमुख से ज्यादा कौन समझेगा चंद्रयान 2 का मोल

चंद्रयान 2 को लेकर काफी दिनों से उत्सुकता थी। पूरा देश इस खबर पर हर पल निगाहें जमाए बैठा था। उम्मीद थी कि हमारे देश के वैज्ञानिक गर्व का एक और पल प्रदान करेंगे,उन्होंने किया भी हम करोड़ो किलोमीटर का रास्ता बिना किसी बाधा के अपने कौशल से पर कर गए। बॉलीवुड के गानों में चांद के पार जाने का सपना देखने वाले लोग वास्तविकता में चांद की सतह पर लैंड करते भारत के चंद्रयान को देखने के लिए टीवी और मोबाइल से चिपक गए। रात के 2 बजे के आसपास लैंडिंग का समय तय था लेकिन करोड़ो किलोमीटर की दूरी के बाद महज 2.1 किलोमीटर की दूरी भारी पड़ी और सवा सौ करोड़ से ज्यादा भारतीयों और सैकड़ों वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से साकार होने वाला एक सपना चंद सेकंड्स में टूट गया।


यह सपना टूटा तो टूटा बेशक हम चांद की सतह पर अपने यान की लैंडिंग न देख सके, बेशक हम दुनिया के चुनिंदा देशों के एलीट पैनल में इस बार शामिल न हो सके, बेशक संपर्क टूट कर सपने चूर हो गए लेकिन हौसला बरकरार है। सपने और उम्मीदें जीवंत हैं। पहली बार मे सफलता मिलेगी यह आवश्यक नही है लेकिन जिस तरह इसरो के चीफ और भारत के प्रधानमंत्री ने इस असफलता के बाद भी सफल होने के प्रयास का माद्दा दोहराया वह अपने आम में अहम है। खैर 95 फीसदी सफल मिशन में भी कुछ लोग खामी ढूंढ रहे हैं। कहीं पीएम तो कहीं इसरो प्रमुख लोगों के निशाने पर हैं लेकिन इस देश की बहुमत आबादी उन वैज्ञानिकों के साथ है जिन्होंने इस सपने को संजोने और उसे पूरा करने की कोशिशों में न जाने क्या क्या बाधाएं झेलीं हैं।


चंद्रयान 2 से संपर्क टूटा है हौसला नही। हम फिर प्रयास करेंगे, चांद पर तो पहुंच ही गए बस देख न सके। कोई बात नही एक छलांग और लगेगी, दुगनी ऊर्जा से लगेगी,वैज्ञानिकों के ज्ञान और विज्ञान पर पूरा भरोसा है। पूरा देश आपका,आपके प्रयासों का,आपकी अनवरत मेहनत और बिन सोए गुजारी रातों के लिए आपका शुक्रगुजार है। महीनों की रोमांचक यात्रा का थोड़ा दुखद और निराशाजनक परिणाम रहा लेकिन कोई बात नही इससे उबर कर और ऊपर जाना है। सभी को बधाई और शुभकामानाएं। भारत एक मात्र देश है जो चमत्कार पर भरोसा रखता है,उम्मीद है कोई चमत्कार विज्ञान की तरफ से आप कर दिखाएंगे। यह हमारा पहला प्रयास था यहाँ तो 40 से ज्यादा बार रूस और अमेरिका फेल हुए और तब कहीं जाकर छू पाए चांद।


खैर अब आगे बात इस मिशन से क्या मिला,क्या मिलता और क्या खोया इसकी नही करते हैं बल्कि इसरो के प्रमुख के सिवन की करते हैं। कुछ महीने पहले जब चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग हुई उस दिन जिज्ञासावश गूगल पर इसरो प्रमुख से संबंधित जानकारी ढूंढते हुए जो हासिल हुआ उस पर एक आम इंसान के लिए भरोसा करना कठिन है। गूगल पर उनके बारे में मिला कि वह तमिलनाडु के सुदूर किसी गांव से निकल कर इस पोस्ट तक पहुंचे हैं। वह एक गरीब किसान परिवार से संबंध रखते हैं। अपने परिवार में वह ग्रेजुएशन करने वाले पहले व्यक्ति हैं। इसके बाद जब टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट पढ़ी तो वह और आश्चर्यजनक है।


रिपोर्ट के अनुसार के सिवन ने बताया कि मेरे पिताजी ने मेरा दाखिला पास वाले कॉलेज में करवा दिया, वजह यह थी कि वह चाहते थे कि कॉलेज के बाद मैं खेती में भी उनकी मदद कर सकूं। उन्होंने बताया कि मैं पढ़ाई में होशियार था। मैं बीएसी का कोर्स कर रहा था जिसमें गणित विषय में 100 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। जिसके बाद पिता की सोच बदली और आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला एमआईटी में करवा दिया। इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि बचपन मे सैंडल, जूते और पैंट उन्होंने कभी नही पहना था। कॉलेज तक वह धोती में जाया करते थे। पैंट पहली बार एमआईटी में एडमिशन के बाद उन्होंने पहना था।

पढ़ाई पूरी करने के बाद वह लगभग तीन दशक से इसरो से जुड़े हुए हैं। उन्हें जनवरी 2018 में तीन साल के लिए इसरो चीफ नियुक्त किया गया था। उन्हें रॉकेट मैन के नाम से भी जाना जाता है। इसके बावजूद कुछ लोग ऐसे हैं जो उनकी क्षमता और दक्षता पर सवाल उठा रहे हैं। साथ ही इस मिशन में लगे लगभग एक हज़ार करोड़ की राशि को बर्बाद करने की बात कह रहे हैं। उन लोगों को उनकी जीवनी,उनका संघर्ष और उनकी उपलब्धियां पढ़नी चाहिए साथ ही यह भी आकलन करना चाहिए की एक किसान परिवार से निकला वह व्यक्ति जो चाहता तो दुनिया के किसी भी कोने में जाकर अपनी प्रतिभा का उपयोग कर सकता था लेकिन उसने स्वदेश को चुना,उस पर सवाल उठाना कितना जायज है। हमें और देश को सिवन पर पूरा भरोसा है। उम्मीद है जल्द हम चांद और मंगल के पार जाएंगे। हमारे सपने साकार होंगे और भारत उनकी अगुवाई में नया इतिहास लिखेगा।

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