राजनीति में दांव पेंच फायदा नुकसान देख कर ही चले जाते हैं। इसका नतीजा भले ही कभी कभी उल्टा निकल जाए यह बात अलग है। एक बार फिर यूपी में कुछ ऐसा ही होगा कम से कम से अभी के राजनीतिक माहौल को देखकर तो ऐसा ही लगता है। योगी सरकार का दांव योगी और बीजेपी पर ही भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। यह दांव जिस सोच के साथ चला गया वह शायद ही सफल हो ऐसे सवाल राजनीतिक गलियारों में उठने लगे हैं। क्या है वह दांव यह बताने से पहले आइये पहले यह समझें कि पूरा माजरा है क्या और क्यों ?
दरअसल जिस तरह देश मे दलित राजनीति की बात जोर शोर से उठ रही है और सभी दल अपने अपने तरीके से उन्हें रिझाने में लगे हैं वैसे में बीजेपी इसमे पीछे कतई नही रहना चाहती है। वह भी ऐसे वक्त में जब 2019 में लोकसभा चुनाव हैं और हाल ही में एससी-एसटी एक्ट में संसोधन लाकर बीजेपी ने उन्हें साधने की कोशिश की है। हालांकि यह बात अलग है कि इस फैसले से बीजेपी का कोर वोटर माना जाना वाला सवर्ण समाज उससे नाराज हो गया। ऐसे में अपने कोर वोटर के साथ दलितों के हाल के दिनों के हुए आंदोलन से निकले उनके सबसे बड़े नेता की गिरफ्तारी से उपजी नाराजगी को बीजेपी दूर करना चाहती थी।
यही वजह भी रही कि अभी कुछ दिनों पहले ही रासुका की समयसीमा बढ़ाने वाली सरकार ने भीम आर्मी के नेता चंद्रेशेखर रावण को अचानक रिहा करने का फैसला ले लिया। बीजेपी के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो योगी सरकार रावण की दलितों में पैठ और उसकी गिरफ्तारी से उपजी नाराजगी को हल्के में नही लेना चाहती थी। इसके अलावा दलित वोटरों की आबादी भी यूपी की राजनीति को बड़े स्तर पर प्रभावित करने का माद्दा रखती है।
अब बात करें इस जाल में फंसने की तो जिस तरह रावण ने जेल से निकलते ही आधी रात को सरकार और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया इससे यह तो साफ है कि इसका फायदा बीजेपी को मिलता नही दिख रहा। इसके अलावा उसने सपा-बसपा को लेकर नरमी बरती, जिससे संकेत साफ है कि आने वाले वक्त में रावण सपा-बसपा को समर्थन का एलान कर सकता है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि क्या यह राजनीतिक दांव बीजेपी पर भारी पड़ सकता है।