हिन्दू रीति रिवाज से नही इस विधि से होगा करुणानिधि का अंतिम संस्कार, आइये जानें क्यों ?

तमिलनाडु की राजनीति या यूं कहें दक्षिण भारतीय राजनीति के पितामह और डीएमके सुप्रीमों एम करुणानिधि का निधन हो गया है। इस खबर के बाद तमिलनाडु सहित पूरे देश में शोक की लहर है और प्रशंसकों में अफरातफरी का माहौल है। उनके निधन के बाद राज्य में सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गई है और साथ ही कल छुट्टी का ऐलान भी किया गया है।

इन सब के बीच अब उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हो गया है। दरअसल यह विवाद इसलिए है क्योंकि डीएमके के नेता चाहते हैं कि करुणानिधि का अंतिम संस्कार द्रविड़ आंदोलन के नेता और डीएमके के संस्थापक अन्नादुरै की समाधि स्थल मरीन बीच पर हो लेकिन तमिलनाडु सरकार ने इसकी इजाजत नही दी। अब डीएमके इस मामले को कोर्ट में ले गई है। इसका फैसला आज देर रात या कल तक आ सकता है। यह विवाद इसलिए है क्योंकि अन्नादुरै के अलावा एमजीआर और जयललिता का अंतिम संस्कार भी यहीं हुआ था ऐसे में इजाजत क्यों नही दी जा रही?

यह तो हुई एक बात जो उनके निधन के बाद निकल कर सामने आई है। अब आइये आपको एक और जानकारी दें। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक करुणानिधि का अंतिम संस्कार हिन्दू या ब्राह्मण रीति रिवाजों के अनुसार नही होगा। उन्हें दफनाया जाएगा। इसके पीछे की वजह बताते हुए यह लिखा गया है कि डीएमके द्रविड़ आंदोलन के बाद राजनीति में स्थापित हुई थी। द्रविड़ आंदोलन में शामिल लोग हिन्दू मान्यताओं और ब्राह्मणवादी परंपराओं पर यकीन नही रखते हैं। यहां तक कि वह अपनी जाति भी अपने नाम के साथ नही लिखते ऐसे में उनका दाह संस्कार नही किया जा सकता है। यही वजह है कि उन्हें दफनाया जाएगा।

जयललिता के निधन के बाद भी यही सवाल सामने आया था कि उनका अंतिम संस्कार कैसे होगा? बाद में जयललिता को भी दफनाया गया था। जयललिता से पहले डीएमके के संस्थापक अन्नादुरै और एआईडीएमके के संस्थापक एमजीआर को भी उसी स्थान पर आसपास में दफनाया गया था। आज वहां उनकी समाधि है।

आपको बता दें कि द्रविड़ आंदोलन के बाद जब द्रविड़ राजनीति का वर्चस्व बढ़ा तब अन्नादुरै और एमजीआर साथ थे। हालांकि अन्नादुरै के निधन के बाद डीएमके की कमान करुणानिधि के हाथ मे आई और एमजीआर अलग हो गए। बाद में उन्होंने एआईडीएमके की स्थापना की जिसकी नेता जयललिता भी रहीं और मुख्यमंत्री भी बनीं। ऐसे में उसी परम्परा का पालन करते हुए और द्रविड़ राजनीति में इसकी अहमियत को देखते हुए उन्हें दफनाने का फैसला लिया गया है।
सोर्स- बीबीसी हिंदी

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