2019 का मुद्दा एनआरसी नही इनमें से कोई एक होगा

असम में नेशनल सिटीजन रजिस्टर के आंकड़े जारी होने के बाद देश मे राजनीतिक बवाल मचा हुआ है। हर तरफ बस इसकी ही चर्चा है। सब को इस बात में दिलचस्पी है कि क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए? क्या सही है और क्या गलत? राजनीतिक रोटियों को सेंकने की तैयारी भी अभी से शुरू हो चुकी है। सबकी अपनी डफली अपना राग वाली कहानी है। खास कर असम के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी इस मामले को लेकर कुछ ज्यादा ही एक्टिव हैं। इज़के नुकसान उन्हें असम में बेशक हो चुका है लेकिन वह अपने कदम वापस लेकर इसे और बढ़ाना बिल्कुल नही चाहेंगी। खैर इस राजनीतिक उठापटक वाले मुद्दे और 40 लाख लोगों के इससे जुड़े होने के बीच आम लोगों में यह चर्चा शुरू हो चुकी है कि क्या 2019 लोकसभा से पहले यह एक अहम मुद्दा होगा? तो जवाब है शायद नही। आइये हम समझाते हैं क्यों?

यूँ तो देश के अंदर कई ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जिनके भरोसे चुनाव लड़े जाने चाहिए। हालांकि यह भारत है और यहां की राजनीति मुद्दों से ज्यादा धर्म, सम्प्रदाय, जाति और क्षेत्र के नाम पर लड़ी जाती रही है। 2014 इनमे से एक अपवाद है जब विकास के मुद्दे पर मोदी सरकार चुनी गई थी। खैर यह सब बातें बाद में अब आइये आपको बताएं कि हम ऐसा क्यों कहा रहे हैं कि एनआरसी 2019 के लिए कोई मुद्दा नही। इज़के अलावा यह भी बताएंगे कि कौन से ऐसे कम से कम दो मुद्दे हैं जो 2019 कि दशा और दिशा तय करेंगे। सबसे पहले बात एनआरसी के करें तो 1971 से लेकर 1980 तक असम में इसका घनघोर विरोध हुआ। यह मांग थी कि अवैध रूप से जो लोग असम में दाखिल हुए उन्हें निकाला जाए। हालांकि राजनीति ने ऐसा होने नही दिया। असम के कमोबेश हर दल और नागरिक इसका समर्थक रहा है। ऐसे में विपक्ष का विरोध बेईमानी साबित होगा। इसको ऐसे भी समझें कि ममता बनर्जी जिस एनआरसी का विरोध कर रही हैं उसी मुद्दे पर उनके ही दल के असम प्रदेश अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि यह माहौल खराब करने की राजनीति है।

अब बात करते हैं उन मुद्दों की जो देश की राजनीति में बड़ा और अहम रोल अदा करेंगे। यह मुद्दे कुछ तो जनभावना से जुड़े हैं और कुछ मजबूरी से। मसलन इनमे सबसे बड़ा मुद्दा अगर समाज के लिहाज से देखें तो बेरोजगारी है। मोदी सरकार बेशक व्यवसाय, व्यापार और न जाने कितने आंकड़े गिना कर इन्हें सही साबित करे लेकिन यह हकीकत है कि बेरोजगारी के मुद्दे पर केंद्र सरकार विफल रही है। इज़के अलावा जनभावना से जुड़े मुद्दों की बात करें तो राम मंदिर और कश्मीर में धारा 370 और 35-अ से संबंधित मामले कोर्ट में लंबित हैं। यह भी लगभग तय है कि गेंद कोर्ट से केंद्र के पाले में आएगी। इज़के अलावा चीफ जस्टिस का कार्यकाल जल्द ही खत्म होने को है तो वह इन मामलों को खुद देख रहे हैं और जल्द से जल्द निपटाने में दिलचस्पी ले सकते हैं। ऐसे में अगर इन दो मुद्दों में से कोई भी एक निपट गया और सरकार के पक्ष में फैसला आया तो 2019 के लिए बीजेपी की राह आसान हो जाएगी। बाकी आने वाले कुछ महीनों में मुद्दों को लेकर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

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