पाकिस्तान में कल हुए आम चुनावों के बाद नतीजे आ चुके हैं। नतीजों में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-पाकिस्तान सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है। इस चुनाव में नवाज शरीफ की अगुवाई वाला दल जहां दूसरे नंबर पर रह गया वहीं पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आशिफ अली जरदारी के बेटे बिलावल भुट्टो की अगुवाई वाला दल कुछ खास कमाल न दिखा सके और तीसरे नंबर पर रह गया।
इन चुनावों में एक नया आगाज़ और अंजाम भी देखने को मिला। जैसा कि शुरू से ही अंदेशा था कि सेना के चहेते इमरान इस बार कोई करिश्मा दिखा सकते हैं वह नतीजों के आने के बाद सही साबित हुआ।
नवाज का पाकिस्तान लौट कर जेल जाने और सहानुभूति बटोरने का दांव धरा का धरा रह गया। इन चुनावों में मुख्यतः दो दलों के बीच टक्कर का माना जा रहा था। नवाज और उनकी बेटी को सजा सुनाये जाने के बाद जहां उनके दल की अगुवाई उनके भाई शहबाज़ शरीफ कर रहे थे वहीं अपनी पत्नी और पत्रकार रेहम खान के आरोपों से इमरान भी कमजोर पड़ते नजर आ रहे थे।
इस चुनाव में दिलचस्पी और डर हाफ़िज़ सईद की एंट्री ने भी बढ़ाई। हालांकि यह अलग बात है कि आतंक के आका हाफ़िज़ को उसके अपने ही मुल्क के लोगों में अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए एक सीट नही जीतने दी। उसके बेटे और दामाद तक को हार का सामना करना पड़ा।
अब बात करते हैं कि इतिहास को कैसे आगाज़ और अंजाम मिला। वह ऐसे की जब आज से 20 साल पहले पाकिस्तान की राजनीति में इमरान की एंट्री हुई थी तो किसी ने नही सोचा था कि क्रिकेट के बाद उनकी राजनीति के इनिंग उन्हें देश का वजीर-ए-आज़म बना देगी। हाफ़िज़ को अंजाम ऐसे मिला कि कश्मीर और भारत के खिलाफ आग उगलकर भी खाता तक नही खोल सका। नवाज का राजनीति में लंबा अनुभव और पाकिस्तान के लिए किया गया प्रयास विफल रहा यह भी देखने को मिला।
अब भारत के लिहाज से बात करें तो हाफ़िज़ का खाता न खुलना सबसे बड़ी राहत है। हालांकि इमरान की छवि भारत विरोधी है। ऐसे में पाकिस्तान की नई सरकार बसे भारत के रिश्ते सामान्य होंगे या तल्खी और बढ़ेगी यह कुछ वक्त में ही साफ हो पायेगा।