पूर्वोत्तर के इस राज्य में दक्षिण के राज्यपाल, क्या हैं इसके मायने?

पूर्वोत्तर के अधिकतर राज्यों की सत्ता में अब बीजेपी का कब्जा है। असम से शुरू हुआ बीजेपी की जीत का यह दौर नागालैंड और अन्य कई राज्यों तक बदस्तूर जारी है। कम सीटों के बावजूद आज वह सत्ता की हिस्सेदार है और साल के अंत मे होने वाले मिजोरम चुनाव से उसे काफी उम्मीद है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह यह पहले ही कह चुके हैं कि मिजोरम चुनाव के बाद कांग्रेस पूर्वोत्तर से साफ हो जाएगी। बेशक अभी चुनावों में लंबा वक्त बाकी है लेकिन अभी से अपने अपने मोहरे और चालें तय की जाने लगी हैं।

इसी क्रम में मिजोरम में नए राज्यपाल की नियुक्ति का मामला भी विवादों में घिर गया है। आपको बता दें कि केरल बीजेपी के इकाई प्रमुख रह चुके कुम्मनम राजशेखरन को मिजोरम का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है। वह शपथ लेकर अपना कार्यभार भी संभाल चुके हैं लेकिन उनकी नियुक्ति का विरोध कई स्थानीय राजनीतिक और अन्य संगठन कर रहे हैं। स्थानीय दलों का मानना है कि उनकी नियुक्ति बीजेपी के हिंदूवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक हिस्सा है।

गौरतलब है कि इसके सियासी मायने हो भी सकते हैं और नही भी। ऐसा इसलिए है क्योंकि राजशेखरन आरएसएस से जुड़े एक कार्यकर्ता की हैसियत से राजनीति में आये थे और केरल जैसे वामपंथी राजनीति से लोहा लेते हुए आगे बढ़े हैं। इसमे हिंदूवादी एजेंडा सबसे ऊपर रहा है। इसके अलावा यह भी कहा जा सकता है कि राज्यपाल का पद एक गरिमा का पद है और इसे बनाये रखा जाना चाहिए। इसे किसी धर्म या खास मकसद से जोड़ कर नही देखा जाना चाहिए।

हालांकि इन सब के बीच रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल निर्भय शर्मा के स्थान पर राज्यपाल बने राजशेखरन का मिजोरम में कार्यकाल कैसा होगा यह तो आने वाला वक़्त बताएगा लेकिन इन सब के बीच दक्षिण के एक नेता को पूर्वोत्तर में लाकर राज्यपाल बनाने के सियासी मायने अपने अपने हिसाब से निकाले जाने लगे हैं।

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