आंध्रप्रदेश में हाल के दिनों में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदला। इस घटनाक्रम में जहां क्षेत्रीय दल तेलगु देशम पार्टी ने बीजेपी से खुद को अलग कर लिया वहीं आंध्र से लेकर दिल्ली तक और सड़क से लेकर संसद तक सरकार को कठघरे में लाने की कोशिशों में भी लग गई। हालांकि टीडीपी का यह दांव राजनीतिक रूप से उल्टा पड़ सकता है। ऐसा इसलिए है कि आज भले ही आंध्रप्रदेश के सभी क्षेत्रीय दल सहित कांग्रेस और राहुल भी केंद्र के खिलाफ इस मुद्दे पर साथ खड़े दिख रहे हैं लेकिन इसका नुकसान न सिर्फ राज्य में बीजेपी को होगा बल्कि इससे कहीं ज्यादा टीडीपी को होगा। आइये जानते हैं कैसे?
राज्य में चार साल से बीजेपी-टीडीपी गठबंधन की सरकार थी। ऐसे में यह मांग पुरानी थी और दोस्ती भी। इसके बावजूद बीजेपी से अलग होने का फैसला लेने में पार्टी को चार साल क्यों लगे यह सवाल वहां की जनता चुनावों के दरम्यान जरूर पूछेगी। इसके अलावा एक समय था जब कांग्रेस की सरकार वहां हुआ करती थी। उसके मुखिया थे राजशेखर रेड्डी, अब उनके बेटे और वाईएसआर कांग्रेस के मुखिया भी इस लड़ाई में कूद गए हैं। वह फिलहाल टीडीपी का समर्थन इस मुद्दे पर कर रहे हैं और केंद्र के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक पर अपना समर्थन दिया। यह यूँ ही नही है, इसके पीछे एक बड़ी रणनीति हैं और यह रणनीति हो न हो राजनीति के आधुनिक चाणक्य प्रशांत किशोर की हो।
प्रशांत वहां वाईएसआर कांग्रेस की चुनावी प्रबंधन का जिम्मा देख रहे हैं। प्रशांत तिल को भी ताड़ बना उसका फायदा लेने में माहिर हैं। इसका बेहतरीन उद्धार बिहार चुनाव के दौरान पीएम के डीएनए पर दिए बयान से लिया जा सकता है कि किसे उन्होंने इसे बिहार की आन से जोड़ दिया, बिहारी अस्मिता से जोड़ दिया। ऐसे में कल टीडीपी यहीं मात खाएगी। जब वाईएसआर इसका क्रेडिट खुद ले जाएगी और टीडीपी के साथ बीजेपी और कांग्रेस हाथ मलते रह जाएंगे। ऐसे भी राज्य में कांग्रेस का कोई रोले है नही और बीजेपी की केंद्र सरकार कोई भी दांव खेल जाएगी। ऐसे में नुकसान हर तरफ से टीडीपी का होगा।