प्रधानमंत्री के मन की बात को लेकर अक्सर विपक्ष उनपर हमलावर रहता है। कभी इस कार्यक्रम को लेकर, कभी इस मुद्दे को लेकर तो कभी इसके पेशकश के अंदाज को लेकर। लेकिन अब जो विवाद इसमे जुड़ा है वह अगर तूल पकड़ता है तो यह वाकई न सिर्फ इस लोकप्रिय कार्यक्रम के लिए नुकसानदायक होगा बल्कि पीएम मोदी की छवि को भी बट्टा लगाने वाला साबित हो सकता है। मन की बात कार्यक्रम मोदी सरकार बनने के बाद पीएम द्वारा महीने के आखिरी रविवार को उनके संबोधन से जुड़ा कार्यक्रम है जिसमे वह अलग-अलग मुद्दों पर न सिर्फ बात करते हैं बल्कि सलाह और राय का भी आदान प्रदान करते हैं।
मन की बात के इस विवाद में बीजेपी नेता अरुण शौरी ने बड़ा खुलासा किया है। दरअसल शौरी पिछले कुछ समय से अपनी ही पार्टी और सरकार पर हमलावर हैं। इसी क्रम में शौरी ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि मन की बात पर आधारित जिन दो किताबों का लोकार्पण पिछले साल राष्ट्रपति रहे प्रणव मुखर्जी की अगुवाई में किया गया और जिस लेखक का जिक्र किया गया वह असल मे इसके लेखक हैं ही नही? शौरी के इस बयान की पुष्टि किताब के तथाकथित लेखक राजेश सेन ने भी की है। उन्होंने अपने एक बयान में कहा कि किताब पर लेखक के रूप में अपना नाम देखकर मैं खुद हैरान था। मुझे पीएमओ से बुलावा आया और एक पहले से लिखा हुआ भाषण पढ़ने को दिया गया।
अब इस खुलासे के बाद सवाल यह है कि अगर दोनों सच बोल रहे हैं तो क्या यह किताब महज एक पब्लिसिटी स्टंट थी? इसे करने के पीछे क्या मकसद था? क्या यह किताब भी एक जुमला थी? और न जाने कितने सवाल। इस मामले के सामने आने के बाद अभी तक इस पर बीजेपी, पीआईबी या पीएमओ से कोई प्रतिक्रिया सामने नही आई है। लेकिन यह सवाल जरूर अब उठ खड़ा हुआ है कि आखिर राजेश सेन अगर लेखक नही हैं तो कौन है? क्या इसे महज असेम्बल कर किताब की शक्ल दी गई और राजेश सेन के नाम का इस्तेमाल हुआ? या यह महज एक राजनीतिक स्टंट है? उम्मीद है धीरे धीरे इन सवालों के जवाब सामने आएंगे।